रायपुर: हर कुत्ते के दिन आते हैं….यह एक पुरानी कहावत है। आज देश में एक वर्ग का कुत्तों की प्रति प्रेम और देश में लंबित लाखों समस्याओं व केसों के बीच जिस तरह से कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देने में तत्परता दिखाई है उसे देखकर पढ़कर या समझ कर एक बात तय हो जाती है कि, कुत्तों के दिन आ गए।
देश में जहां एक तरफ महंगाई, बेरोजगारी, अपराध अपने चरम पर है। नेताओं का भ्रष्टाचार आसमान छू रहा है, प्रशासनिक अधिकारियों की हरामखोरी जहां अपने शिखर पर है, इन सब से जुड़े देश में लाखों मामले जिला स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में पेंडिंग है। देश के करोड़ों लोग इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट की चौखट में बैठे आशा भरी नजरों से देख रहे हैं, लेकिन इन सब में सुप्रीम कोर्ट का ध्यान नहीं गया।
दूसरी तरफ जिस तरह से आवारा कुत्तों को लेकर देश का एक वर्ग व्याकुल हुआ पड़ा था, तो दूसरी तरफ वही वर्ग दूसरे जानवरों को लेकर ऐसी संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाता। जिस देश में करोड़ों लोगों के आदर्श व उनके आराध्य भगवान श्री कृष्ण ने गायों की सेवा की हो, अपने बचपन में गायों को वन में चराने लेकर गए हो। उन्हें कटता हुआ देखकर आखिर इन पशु प्रेमियों का प्रेम क्यों नहीं जागता। आज देश के कोने-कोने से सैकड़ो गाय प्रतिदिन बूचड़खाने की तरफ भेजी जाती हैं। जहां इन्हीं पशु प्रेमियों में से कइयों के जीभ के स्वाद के लिए उन्हें काटा जाता है। यह पशु प्रेमी अपनी डाइनिंग टेबल पर बैठकर आराम से गायों के शरीर के टुकड़ों का आनंद लेते हैं, फिर यह वही पशु प्रेमी बाहर निकलकर डॉग लवर्स बनते हैं और चौक चौराहों में धरना प्रदर्शन करते हैं। इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर एक जानवर के लिए इतना प्रेम तो दूसरे के लिए वह प्रेम क्यों नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने जिस तत्परता के साथ डॉग लवर्स को खुश करने में फैसला लिया है वह वाकई आश्चर्यचकित करने वाला है। आश्चर्यचकित इसलिए नहीं की कुत्तों के पक्ष में फैसला सुनाया गया, वह भी प्राणी है और उनकी भी सुरक्षा होनी चाहिए, लेकिन जिस देश में करोड़ों केस पेंडिंग हो, जिस देश में करोड़ों लोगों की भावनाएं इस बात से आहत होती हो की गायों को काटा ना जाए। उस पर आखिर सुप्रीम कोर्ट कोई निर्णय क्यों नहीं ले पाता।
दूसरी तरफ जिन गाय माता पर करोड़ों हिंदुस्तानियों की आस्था टिकी है उनकी आस्था का सम्मान सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं करता है। आखिर क्यों गायों के काटने पर रोक नहीं लगाई जाती। अक्सर अपने गांव के बुजुर्गों से यह कहते सुना होगा कि बेटा कलयुग आ गया है, आसपास की घट रही घटनाओं को देखकर यही लगता है कि जो देश गौ माता की विरासत को समेटे हुए इतना सफ़र तय कर चुका है, उस देश में कुत्तों के तो अच्छे दिन आ गए लेकिन शायद गौ माता के नहीं आ रहे। इससे यही प्रतीत होता है कि हां बेटा कलयुग चल रहा है।
(लेखक छत्तीसगढ़ के पत्रकार हैं और लेख में विचार उनके निजी हैं।)