यूपी सरकार को सील किए गए मदरसों के मामले में हाई कोर्ट ने फटकार लगाई है. हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 30 सील किए गए मदरसों को तुरंत खोलने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि बिना सुनवाई का मौका दिए सरकार ने कार्रवाई की, जो उचित नहीं है. याचिकाकर्ता का तर्क था कि नोटिस सही तरीके से नहीं दी गई और सुनवाई का अवसर नहीं मिला.
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्र ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखा, कोर्ट ने दलील स्वीकार की. हाई कोर्ट ने कहा, सरकार नियमों के अनुसार सुनवाई कर नए आदेश जारी कर सकती है. अधिकारियों को विधि सम्मत प्रक्रिया अपनाकर आगे कदम उठाने की छूट दी गई. सरकार के वकील ने विरोध किया लेकिन कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली. कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि बिना सुनवाई के अब मदरसों को बंद नहीं किया जा सकता.
श्रावस्ती जिले के मामले में कोर्ट का फैसला
इससे पहले हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने गुरुवार को श्रावस्ती जिले के ढाई दर्जन से अधिक मदरसों को बंद करने के लिए जारी नोटिस को रद्द किया था. हालांकि, पीठ ने सरकार को कानून के अनुसार नए नोटिस जारी करने की छूट भी दी थी. जस्टिस पंकज भाटिया की पीठ ने मदरसा मोइनुल इस्लाम क़समिया समिति और अन्य मदरसों द्वारा अलग-अलग दायर की गयी याचिकाओं का निपटारा करते हुए फैसला सुनाया था.
याचिकाकर्ताओं की दलील
कोर्ट ने इससे पहले इसी साल 5 जून को इन नोटिसों पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश पारित किया था. पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील पर विचार किया कि मदरसे बंद करने का निर्देश देने से पहले उन्हें नोटिस नहीं मिला था. पीठ के सामने ये तथ्य भी रखा गया कि नोटिस बिना सोचे-समझे जारी किए गए थे. सभी नोटिसों में एक ही नंबर था.
राज्य सरकार ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई थी कि प्रशासन ने मदरसों को अपनी बात रखने का कोई मौका दिए बिना ही कार्रवाई की है. इसलिए यह कार्रवाई अवैध है. दलीलों का विरोध करते हुए सरकार ने कहा कि कार्रवाई उत्तर प्रदेश गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता, प्रशासन और सेवा नियमावली-2016 के तहत की गई. राज्य की कार्रवाई में कोई अवैध बातें नहीं थीं.