राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में राज्य भर के सरकारी स्कूलों में 86,000 से ज़्यादा जर्जर कक्षाओं को बंद करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जर्जर हालत में हो रही कक्षाओं को बंद कर दिया जाए और छात्रों को इनमें प्रवेश करने से रोका जाए. यह आदेश झालावाड़ में एक स्कूल की छत गिरने की घातक घटना के बाद शुरू किए गए राज्यव्यापी सुरक्षा ऑडिट के जवाब में दिया गया है.
इस सर्वेक्षण से बुनियादी ढांचे की व्यापक विफलताओं का पता चला है. झालावाड़ की घटना के बाद किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि राजस्थान के 63,018 सरकारी स्कूलों, जिनमें कुल 5,26,162 कक्षाएं हैं, उनमें से 86,934 पूरी तरह से खराब और कभी भी गिरने वाली अवस्था में हैं.
5 हजार स्कूलों का उपयोग पूरी तरह असुरक्षित
इसके अलावा, 5,667 स्कूलों को उपयोग के लिए पूरी तरह से असुरक्षित माना गया. सर्वे में सामने आया कि कुछ स्कूलों की स्वच्छता सुविधाओं का भी बुरा हाल था. करीब 17 हजार 109 शौचालयों की हालत ऐसी थी कि उन्हें गिरवाकर दोबारा निर्माण ही करवाया जा सकता है, जबकि 29 हजार 093 अन्य को मरम्मत की आवश्यकता थी.
वैकल्पिक और तकनीकी मूल्यांकन के आदेश
उच्च न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि छात्रों की शिक्षा बाधित न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए तुरंत उचित वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए. हाल ही में हुई एक अन्य घटना में, जैसलमेर में एक स्कूल का गेट गिरने से और भी ज़्यादा लोग घायल हो गए, जिसके बाद अदालत ने इंजीनियरों से 4 सितंबर तक तकनीकी सत्यापन रिपोर्ट पेश करने को कहा था.
त्रासदी के बाद बढ़ता जन आक्रोश
झालावाड़ त्रासदी के बाद स्कूल के बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है. सोशल मीडिया पर पानी से भरी कक्षाओं, टूटी छतों और असुरक्षित सुविधाओं वाली परेशान करने वाली तस्वीरें सामने शेयर करने लगे हैं.
नागरिक समाज समूहों, स्थानीय नेताओं और निवासियों ने तत्काल सुधारों की मांग कर रहे हैं. एक अलग सर्वेक्षण से पता चला कि लगभग 5 हजार 500 स्कूलों, यानी मूल्यांकन किए गए स्कूलों में से 9%, को पूरी तरह से दोबारा बनाए जाने की आवश्यकता है.
सरकारी कार्रवाई पहले से ही जारी
उच्च न्यायालय के आदेश से पहले, मुख्यमंत्री ने सभी संबंधित विभागों को राज्य भर में स्कूल भवनों, अस्पतालों और अन्य सार्वजनिक संरचनाओं का तुरंत निरीक्षण करने का निर्देश दिया था. पांच दिनों के भीतर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया गया था.
हालांकि, रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि कई नगर-स्तरीय स्कूल प्रधानाचार्यों पर ढहती इमारतों को सुरक्षित प्रमाणित करने का दबाव डाला गया था, इस निर्देश के कानूनी और नैतिक निहितार्थों को लेकर शिक्षकों में चिंता पैदा हो गई है