डूंगरपुर: लोकसभा में संसदीय क्षेत्र बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत ने अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकायों के गठन को लेकर केंद्र सरकार से पूछे सवाल. जवाब में सरकार ने माना कि बिना विशेष कानून MESA (Municipal Extension to Scheduled Areas) के, अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकाय बनाना संवैधानिक रूप से सही नहीं है. चौंकाने वाली बात यह है कि यह कानून पिछले 24 साल से लंबित है और अब तक सरकार इसे लागू नहीं कर सकी है.
जनजातीय कार्य मंत्री ने बताया कि 2001 में यह विधेयक संसद में पेश हुआ था, 2003 में स्थायी समिति की रिपोर्ट भी आ गई, लेकिन कैबिनेट में कभी मंज़ूरी नहीं मिल पाई. यहां तक कि 2020 में सरकार ने राज्यों से राय ली थी, लेकिन अब तक दो राज्यों (झारखंड और महाराष्ट्र) से जवाब तक नहीं आ पाया है. इससे साफ है कि केंद्र व राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्रों के अधिकारों के संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं है.
सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि यह सरकार की बड़ी नाकामी है कि संविधान के स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकायों की स्थिति अधर में लटकी हुई है. इससे करोड़ों आदिवासी भाई-बहनों के संवैधानिक अधिकार और स्थानीय स्वशासन का हनन हो रहा है.
अनुसूचित क्षेत्र में मेसा क़ानून क्यों? परिचय-
The Provisions of the Municipalities (Extension to the Scheduled Areas) Bill, 2001, जिसे संसद में 30 जुलाई 2001 को पेश किया गया था यह बिल इसलिये लाया जा रहा था क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 243ZC(1) यह कहता है कि नगरपालिकाएं Scheduled Areas पर लागू नहीं होतीं, लेकिन संसद चाहे तो कानून बनाकर अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासीयो के विशेष हितों को ध्यान में रखते हुए लागू कर सकती है.
इसीलिए 30 जुलाई 2001 को पेस किया और Standing Committee को भेज दिया. दो वर्ष बाद नवंबर 2003 में Standing Committee ने इसे अपनाने का सुझाव दिया लेकिन संसद में आज तक बिल पारित नहीं हुआ और उसी का दुष्परिणाम है कि अनुसूचित क्षेत्र में असंवैधानिक रूप से नगर निकायों का गठन हो रहा है और इस क्षेत्र में आदि अनादि काल से रह रहे आदिवासीयो को नाम देकर दूध में गिरी मक्खी की तरह बाहर निकाल के फेका जा रहा है, देश के आदिवासियो के लिये दुर्भाग्य है कि उनके हितों की रक्षा के लिये MESA क़ानून को सरकार ने 24 साल से अटका रखा है.
अनुसूचित क्षेत्र में नगर निकाय को लेकर हाईकोर्ट के निर्णय
- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (जबलपुर) ने 2009 में कहा था कि बिना केंद्रीय अधिनियम के अनुसूचित क्षेत्र में नगरपालिका चुनाव कराना अवैधानीक है
- राजस्थान जोधपुर हाईकोर्ट ने 2024 में अनुसूचित क्षेत्र में नवगठित नगर निकाय को असंवैधानिक मानते हुये 6-7 नगर पालिकायो को निरस्त किया.
मैसा क़ानून में निम्न प्रावधान
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय में आरक्षण का विशेष प्रावधान व सभापति/ महापौर का पद ST आरक्षित रहेगा
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय क्षेत्र में आदिवासी समुदाय की भूमि का विशेष संरक्षण, उस भूमि को कोई भी गेर आदिवासी नहीं ख़रीद सकता है.
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय में ग्राम सभाओं का गठन होगा और भूमि अधिकरण से पूर्व ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य.
- ग्राम सभा की अनुमति के बिना मास्टर प्लान लागु नहीं होगा.
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय में आदिवासी समुदाय के लिये विभिन्न शुल्क में विशेष छूट का प्रावधान.अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय में खनन, आवासीय प्लानिंग व विकासात्मक कार्य करने से पूर्व संबंधित ग्राम से अनुमति लेना अनिवार्य होगा.
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय के भूखंड आवंटन में आदिवासियो का विशेष कोटे का प्रावधान.
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय के कार्मिको की भर्ती में आदिवासी समुदाय के लिये विशेष आरक्षण का प्रावधान.
- अनुसूचित क्षेत्र के नगर निकाय के विस्तार से पूर्व संबंधित ग्राम सभाओं से अनुमति लेना अनिवार्य होगा.
सांसद राजकुमार रोत का कहना है कि सरकार कांग्रेस की हो या बीजेपी की हो आदिवासियो के संवैधानिक अधिकारो का हनन करने में किसी ने कसर नहीं छोड़ी है. समस्त राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में आज जो नगर निकाय क्षेत्र है वहाँ वर्षों से रहने वाले आदिवासी परिवारों को अपनी पुस्तेनी ज़मीन से अतिक्रमणकारी की उपाधि देकर आये दिन हटाया जा रहा है! यें MESA क़ानून लागू नहीं करने का ही भयंकर दुष्परिणाम है. बहुत जल्द केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर इस क़ानून को लागू करवा के आदिकाल से रहने वाले आदिवासी, दलित व पिछड़े परिवारों को उनके मालिकाना हक़ दिलाने का प्रयास किया जायेगा.