जैसलमेर के फतेहगढ़ स्थित मेघा गांव में जुरासिक काल के फाइटोसौर प्रजाति का जीवाश्म (फॉसिल) मिला है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना है. ये डायनासोर से भी पुराना है. उन्होंने इसे देश में जुरासिक काल की चट्टानों से फाइटोसौर जीवाश्म की पहली खोज बताया है. कंकाल जहां मिला है, उस क्षेत्र को संरक्षित दायरे में लिया गया है. अब कंकाल की पूरी खोज जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया करेगा.
वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायणदास इणखिया की मौजूदगी में जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी (जेएनवीयू), जोधपुर के भूविज्ञान विभाग के पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संकाय (Institute of Earth Sciences, Department of Geology) के डीन डॉ. वीएस. परिहार के नेतृत्व में एक टीम फिलहाल फॉसिल को लेकर अध्ययन कर रही है.
मेघा गांव के ग्रामीणों ने 21 अगस्त को इस कंकाल की जानकारी प्रशासन को दी थी. जिले के वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ. एनडी इणखिया मौके पर पहुंचे और रिसर्च शुरू की. उन्होंने ये जुरासिक काल का फॉसिल होने की बात कही. इसके बाद विशेषज्ञ के रूप मे डॉ. परिहार ने निरीक्षण कर फॉसिल की पुष्टि की. डॉ. परिहार ने इसे 201 मिलियन वर्ष (करीब 20 करोड़ साल) पुराना घने जंगलों में पाए जाने वाले वृक्ष छिपकली (फाइटोसौर) मगरमच्छ प्रजाति का जीवाश्म बताया. इसकी लंबाई 1.5 से 2 मीटर है. रिसर्च में सामने आया कि फाइटोसौर (वृक्ष छिपकली) एक प्राचीन सरीसृप है, जो नदियों के पास जंगलों में रहता था.
ट्राइऐसिक पीरियड
ट्राइऐसिक पीरियड 251.9 से 201.4 मिलियन वर्ष पहले तक चला था. यह पीरियड पर्मियन ट्राइऐसिक विलुप्ति के बाद शुरू हुआ इसमें धरती पर जीवन की भारी क्षति हुई थी. इसी दौर में डायनासोर, कछुए, छिपकली समेत विभिन्न स्तनधारी जीव पैदा हुए थे. इस दौर में पेंजिया नामक एक ही महाद्वीप था और विभिन्न प्रकार के जीव, विशेष रूप से सरीसृपों की उत्पत्ति हुई थी. फिलहाल, मेघा गांव के तालाब के पास मिले इस कंकाल के चारों तरफ तारबंदी कर इसे सुरक्षित किया गया है.
डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया- अब इस जगह को संरक्षित करके इस कंकाल की पूरी खोज जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया करेगा, ये बहुत बड़ी खोज है, जिसमें एक पूरा कंकाल हमें मिला है. अब खुदाई होगी और फिर कंकाल पर रिसर्च होगा, इसके साथ कुछ और जीव भी मिल सकते है. डॉ. इणखिया बताते हैं- जैसलमेर में इससे पहले भी थईयात के आसपास के इलाकों में डायनासोर के पंजे के निशान मिले थे. इसके साथ ही आकल गांव में भी 18 करोड़ साल पहले के पेड़ मिले हैं, जो अब पत्थर हो गए हैं. आकल गांव में ऐसे पेड़ों के जीवाश्म को लेकर ‘वुड फॉसिल पार्क’ भी बनाया गया है.
डायनासोर होने के प्रमाण
उन्होंने बताया- जैसलमेर शहर में जेठवाई की पहाड़ी है. यहां से 16 किलोमीटर दूर थईयात और लाठी को ‘डायनासोर का गांव’ कहा जाता है. इसकी वजह है कि इन जगहों पर ही डायनासोर होने के प्रमाण मिलते हैं. जेठवाई पहाड़ी पर पहले माइनिंग होती थी. लोग घर बनाने के लिए यहां से पत्थर लेकर जाते थे. ऐसे ही थईयात और लाठी गांव में सेंड स्टोन के माइनिंग एरिया में डायनासोर के जीवाश्म मिलते हैं. तीनों गांवों में ही माइनिंग से काफी सारे अवशेष तो नष्ट हो गए थे. जब यहां डायनासोर के जीवाश्म मिलने लगे तो सरकार ने माइनिंग का काम रुकवा दिया. अब तीनों जगहों को संरक्षित कर दिया गया है.
शार्क-व्हेल की दुर्लभ प्रजातियां
डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया- जैसलमेर में डायनासोर खाने की तलाश में आते थे आज से करीब 25 करोड़ साल पहले जैसलमेर से गुजरात के कच्छ तक बसा रेगिस्तान जुरासिक युग में टेथिस सागर हुआ करता था. यह वो समय था जब अमेरिका, अफ्रीका और इंडिया सभी देश एक ही महाद्वीप में थे, तब जैसलमेर से लगे टेथिस सागर में व्हेल और शार्क की ऐसी दुर्लभ प्रजातियां थीं, जो आज विलुप्त हो गई हैं.