संवत्सरी महापर्व : धर्म आराधना और वैर-विरोध समाप्ति का संदेश

गंगापुर भीलवाड़ा: संवत्सरी महापर्व के अवसर पर मुनीश्री प्रसन्न कुमार ने अपने प्रवचन में कहा कि जैन धर्म के तीर्थंकर भी ऋषि पंचमी के अवसर पर गहन धर्म-ध्यान में लीन रहते थे. यद्यपि आज चौथ है, किंतु ज्योतिषीय दृष्टि से पंचमी की घड़ियां आरंभ हो चुकी हैं.  श्वेतांबर परंपरा पंचमी के दिन संवत्सरी पर्व मनाती है, वहीं दिगंबर परंपरा पंचमी से आरंभ कर अनंत चतुर्दशी तक दशलक्षण धर्म आराधना करती है.

उन्होंने बताया कि भाद्रपद मास सभी धर्म-संप्रदायों के लिए व्रत और उपवास का विशेष महत्व रखता है.  मुस्लिम समाज रमजान में रोज़ा रखता है और शाकाहार का पालन करता है, जबकि जैन समाज पर्युषण पर्व के दौरान बारह प्रकार की तपस्याओं से आत्म साधना करता है.

मुनि श्री ने कहा कि संवत्सरी का मुख्य संदेश माफी देना और लेना है. यदि कोई व्यक्ति क्षमा नहीं करता, तो उसका बैर केवल इस जन्म तक सीमित नहीं रहता बल्कि पुनर्जन्म तक शत्रुता का कारण बन जाता है. इसलिए इस दिन जैन समाज ‘खमत-खमणा’ कहकर एक-दूसरे से माफी मांगता है.

उन्होंने कहा कि क्षमा केवल जैन धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी धर्मों में इसका महत्व है. ईसाई समाज में प्रभु यीशु ने क्षमा को सर्वोपरि बताया, मुस्लिम समाज ईद पर गले मिलकर क्षमा याचना करता है और जैन समाज संवत्सरी पर क्षमा मांगने और देने की परंपरा निभाता है.

मुनि प्रसन्न कुमार ने आह्वान किया कि संवत्सरी पर्व के अवसर पर सभी लोग आपसी कटुता को समाप्त कर क्षमा, मैत्री और प्रेम का भाव अपनाएं.

Advertisements
Advertisement