सूरजपुर में लापरवाही जस की तस! टोकरी में ढोई गई प्रसूता, कलेक्टर ने सीएमएचओ को थमाया नोटिस

सूरजपुर: भैयाथान विकासखंड के ग्राम पंचायत बड़सरा में एक महिला का खुले मैदान में प्रसव होना जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की असली तस्वीर को सामने ले आया. लापरवाही का आलम यह रहा कि प्रसूता को महतारी एक्सप्रेस तक पहुँचाने से पहले टोकरी में ढोया गया और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उसने बच्चे को जन्म दे दिया. इस अमानवीय घटना पर कलेक्टर ने बड़ा कदम उठाते हुए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. कपिल देव पैकरा को कारण बताओ नोटिस जारी कर 24 घंटे के भीतर जवाब तलब किया है.

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कलेक्टर ने साफ कहा कि गर्भवती महिला को सुरक्षित अस्पताल पहुँचाने की कोई तैयारी नहीं की गई और अधीनस्थ अमले पर बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं रहा. उन्होंने सवाल उठाया कि जब लगातार लापरवाहियाँ सामने आ रही हैं, तो अब तक विभाग ने सुधारात्मक कदम क्यों नहीं उठाए? सीएमएचओ से पूछा गया है कि ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है और हालात क्यों जस के तस बने हुए हैं.

भटगांव के बाद अब बड़सरा… हालात जस के तस

याद रहे कि करीब एक माह पहले भटगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी महिला ने डॉक्टर और स्टाफ की गैरमौजूदगी में फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया था. उस समय जमकर बवाल हुआ और तीन कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई थी. लेकिन ताज़ा घटना ने यह साबित कर दिया कि विभाग ने उस दर्दनाक अनुभव से कोई सबक नहीं लिया.

भाजपा का गढ़, लेकिन विकास शून्य

बड़सरा को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है. यहां से मंडल अध्यक्ष, जिला उपाध्यक्ष समेत कई बड़े नेता जुड़े हैं और पिछले 15 सालों से सरपंची भी भाजपा के पास है. बावजूद इसके गांव की तस्वीर शर्मसार करने वाली है- टूटी सड़कें, दम तोड़ती स्वास्थ्य सेवाएं और जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसती.

नेताओं का छल, विपक्ष की चुप्पी

गांव के लोग सवाल कर रहे हैं कि नेताओं की इतनी बड़ी फौज और सालों की सत्ता के बावजूद बड़सरा का चेहरा क्यों नहीं बदला? पंचायत में स्टेशनरी पर लाखों खर्च दिखाए जाते हैं, लेकिन सड़कों या ह्यूम पाइप के लिए बजट नहीं. जनता का भरोसा टूटा है और गुस्सा बढ़ रहा है. वहीं विपक्ष पर भी उंगली उठ रही है, जो इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह मौन है.

जनता का सवाल– कार्रवाई या खानापूर्ति?

बड़सरा की घटना ने यह साफ कर दिया है कि जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर पंचायत व्यवस्था तक सब बर्बाद है. कलेक्टर का नोटिस जरूर सख्ती का संकेत है, लेकिन जनता का असली सवाल यही है- क्या दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी खानापूर्ति बनकर रह जाएगा?

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