सन 2025 ईस्वी और 1447 हिजरी का यह साल इस्लामी इतिहास में एक बेहद अहम पड़ाव लेकर आया है. इस साल हज़रत मुहम्मद साहब की विलादत-ए-पाक को पूरे 1500 साल मुकम्मल हो रहे हैं. यह सिर्फ़ जश्न का मौक़ा नहीं, बल्कि गहरे तफ़क्कुर, अहद और सीरत-ए-नबी को ज़िंदगी का हिस्सा बनाने का वक़्त है. दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ईद मीलादुन्नबी अमन, मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम है और इस साल का 1500 साला जश्न ऐतिहासिक एहमियत रखता है.
नबी-ए-करीम की तालीमात इंसानियत के लिए रहमत
इस मौके पर यह याद दिलाना ज़रूरी है कि नबी-ए-करीम की तालीमात न सिर्फ मुसलमानों के लिए बल्कि पूरी इंसानियत के लिए रहमत और रहनुमाई का सबब हैं. इस जश्न का असल मक़सद यही है कि मुसलमान अपनी ज़िंदगी को पैगंबर की सीरत और हिदायतों पर ढालें तथा मोहब्बत, इंसाफ़ और भाईचारे को समाज में आम करें.
क़ादरी वेलफेयर सोसायटी का आह्वान
क़ादरी वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष और सूफी प्रचारक जनाब मोहम्मद शोएब क़ादरी ने तमाम मुसलमानों से अपील की है कि वे इस ऐतिहासिक जुलूस और जश्न में शरीक होते वक़्त इस्लामी अदब और तौर-तरीकों का पूरा ख्याल रखें. उन्होंने कहा कि यह जश्न न सिर्फ़ खुशियों का है बल्कि अमन और मोहब्बत के पैग़ाम को फैलाने का भी है.
मोहम्मद शोएब क़ादरी ने जुलूस और जश्न के दौरान पालन करने योग्य कुछ हिदायतें भी जारी की हैं:
जुलूस में शरीक होने वाले लोग वुज़ू की हालत में रहें और दरूद-सलाम की कसरत करें.
सिर्फ़ नातख़्वानी, दरूद-सलाम और तकबीर की आवाज़ें बुलंद हों.
किसी भी तरह का शोर-शराबा, ग़ैर-शरई अमल या दूसरों के जज़्बात को ठेस पहुँचाने वाले काम से बचें.
शरीक़ होने वाले लोग अच्छा लिबास अपनाएँ और सफ़ाई का खास ध्यान रखें.
जुलूस में क़तारबंदी और नज़्मो-ज़बत का सख़्ती से पालन किया जाए.
आतिशबाज़ी, पटाख़े और किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल न हो.
ट्रैफ़िक पुलिस और स्थानीय प्रशासन के साथ पूरा सहयोग किया जाए ताकि आम जनता को कोई परेशानी न हो.
इस्लाम अमन और इंसानियत का मज़हब
क़ादरी सोसायटी के अध्यक्ष ने कहा कि यह जश्न हमारे लिए एक नए अहद का पैग़ाम है कि हम अपनी ज़िंदगी को नबी-ए-करीम की तालीमात के मुताबिक़ ढालें. मोहब्बत और भाईचारे को बढ़ाएँ, इंसाफ़ को समाज में क़ायम करें और दुनिया को बताएं कि इस्लाम अमन, इंसानियत और मोहब्बत का मज़हब है.