शांति सभा में कमिश्नर नरोन्हा पहुंचे:कलेक्टर को जानकारी मिली थी कि धार्मिक जुलूस के दौरान अपराधी तत्वों द्वारा पथराव किया जा सकता है

सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक भाईचारे की भावना को बनाकर रखने के लिए छत्तीसगढ़ का नाम हमेशा ऊंचा रहा। जिले में अमन-चैन बनाकर रखना, यहां के कलेक्टर के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी मानी जाती है। सन् 1961 में रायपुर में मोहर्रम के अवसर के ठीक पहले कलेक्टर को कुछ संवेदनशील जानकारी मिली।

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जानकारी के अनुसार मोहर्रम के अवसर पर जो जुलूस निकाला जाएगा तब अपराधी तत्वों द्वारा पथराव कर कुछ गड़बड़ी की जा सकती है। जुलूस पर पथराव की संभावित घटना की बात पहले गुपचुप तरीके से चलती रही फिर धीरे-धीरे वह ऐसी फैली कि शहर में सांम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बनने लगी।

कलेक्टर ने बुलाई थी शांति सभा इस स्थिति में रायपुर कलेक्टर ने तय किया कि सांम्प्रदायिक सद्भाव के साथ अमन चैन बनाए रखने के लिए शहर के नागरिकों से सहयोग लिया जाय। कलेक्टर ने रायपुर के जाने माने नागरिकों की बैठक एक महाविद्यालय के सभा कक्ष में आयोजित की।

कलेक्टर द्वारा आयोजित इस शांति सभा में निश्चित समय पर महंत लक्ष्मीनारायण दास, शारदा चरण तिवारी, अहमद जी भाई, रफीक उल्लाह शाह, बुलाकी लाल पुजारी, कमलनारायण शर्मा जैसे प्रतिष्ठित नेता समय पर पहुंच गए। कलेक्टर शांति सभा को शुरू करने ही वाले थे कि उन्होंने देखा कि वरिष्ठ आई.सी.एस. अधिकारी, कमिश्नर रायपुर संभाग, आर.पी. नरोन्हा अपनी जीप में महाविद्यालय पहुंच गए हैं। उन दिनों आई.सी.एस. कमिश्नर का बड़ा रुतबा होता था।

नागरिकों के बीच जाकर बैठ गए कमिश्नर कमिश्नर नरोन्हा को आते देखकर कलेक्टर को आश्चर्य हुआ। उन्होंने आगे बढ़कर नरोन्हा को रिसीव किया। नरोन्हा ने कलेक्टर से कहा, ‘‘मुझे जानकारी मिली कि शांति सभा हो रही है इसलिए मैं आया हूं और इस मीटिंग में शामिल होना चाहता हूं। तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है?‘‘ कमिश्नर की इस अनूठी बात पर कलेक्टर क्या आपत्ति करते।

कलेक्टर ने सभा में सामने की ओर लगी मेज के पास की अपनी कुर्सी पर कमिश्नर से बैठने का आग्रह किया और एक कर्मचारी से कहा कि वह एक और कुर्सी लाकर मेज के दाहिने किनारे पर लगा दें। शिष्टाचार के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारी को ही बैठक की अध्यक्षता करनी चाहिए। इस लिहाज से कमिश्नर के रहते कलेक्टर अध्यक्षता नहीं कर सकते।

बहरहाल, कलेक्टर के विनम्र आग्रह को सुनकर नरोन्हा ने कहा, ‘‘मैं केवल एक नागरिक के रूप में इस मीटिंग में आया हूं, डिस्ट्रिक्ट मजिस्टेªट तुम हो, मैं नहीं। जिले में अमन चैन कायम रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है, मेरी नहीं। यह ध्यान रखो, क्रिमिनल प्रोसिजर कोड में कमिश्नर का जिक्र ही नहीं है। यह मीटिंग तुम्हारी है, मेरी नहीं।‘‘ यह बात कहकर कमिश्नर नरोन्हा आमंत्रित अन्य नागरिकों के बीच जाकर बैठ गए।

शहर का सद्भाव कायम रहा कलेक्टर ने शांति सभा की कार्रवाई संचालित की। नागरिकों से चर्चा होती रही। नरोन्हा बैठक की कार्रवाई को ध्यानपूर्वक सुनते रहे। कोई एक घंटे चली बैठक में नरोन्हा बिल्कुल चुप रहे। बैठक संपन्न होने पर नरोन्हा ने सबको नमस्कार किया और अपनी जीप में बैठकर चले गए। रायपुर के सभी नेता नरोन्हा के काम-काज की शैली को जानते थे।

इस बैठक के बाद कमिश्नर और पुलिस अधीक्षक का आत्मविश्वास बढ़ गया। जिला प्रशासन ने ताजिये के जुलूस के एक दिन पहले शहर के गुंडों को हवालात में बंद कर दिया। किसी नेता ने किसी भी बंद किए गए व्यक्ति को छोड़ने की सिफारिश नहीं की। जिस दिन जुलूस निकला उस दिन पूरे शहर में चाक-चौबंद व्यवस्था की गई। इतना ही नहीं, जुलूस के ठीक आगे कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक पैदल चलते रहे। उनके इस नेतृत्व से जुलूस के दौरान पूरी शांति व्यवस्था बनी रही और पूरे शहर में सद्भाव कायम रहा।

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