एम्स में पहली बार भ्रूण दान, जैन दंपति के साहसिक फैसले से रिसर्च को मिलेगी नई दिशा

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में इतिहास रचते हुए पहली बार भ्रूण दान किया गया है। यह कदम जैन दंपति ने उठाया है, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत दुख को समाज और विज्ञान के लिए उम्मीद में बदल दिया। इस साहसिक निर्णय से चिकित्सा अनुसंधान को नई दिशा मिलेगी और दुर्लभ बीमारियों की समझ व इलाज में मदद मिलेगी।

Advertisement1

जानकारी के मुताबिक, दिल्ली के वंदना जैन और उनके पति ने भ्रूण दान करने का निर्णय तब लिया जब उनकी गर्भावस्था में गंभीर समस्या सामने आई। डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें यह दर्दनाक फैसला लेना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसे समाजहित और विज्ञान की प्रगति के लिए स्वीकार किया। यह दान एम्स के नेशनल टास्क सेंटर फॉर पेरिनेटल मेडिसिन एंड मैनेजमेंट (NTCPMM) के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

विशेषज्ञों के अनुसार, भ्रूण दान रिसर्च में एक नया अध्याय खोलेगा। इससे उन बीमारियों और जेनेटिक समस्याओं की गहन स्टडी की जा सकेगी, जिन पर अभी तक पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, भ्रूण के विकास के दौरान होने वाली जटिलताओं को समझने में मदद मिलेगी। यह चिकित्सा जगत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि अब शोधकर्ता वास्तविक नमूनों के आधार पर नई खोज कर सकेंगे।

जैन परिवार के इस फैसले की डॉक्टरों और समाजसेवियों ने सराहना की है। उनका कहना है कि ऐसा कदम बहुत साहस और संवेदनशीलता की मांग करता है। जब कोई परिवार अपने निजी दर्द को समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल करता है, तो यह न केवल विज्ञान बल्कि मानवता के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा बनता है।

एम्स प्रशासन का कहना है कि भ्रूण दान का यह मामला आने वाले समय में अन्य परिवारों के लिए भी प्रेरणादायी साबित होगा। इससे भ्रूण अनुसंधान को गति मिलेगी और मेडिकल साइंस नई ऊंचाइयों को छू सकेगा।

जैन दंपति के इस ऐतिहासिक कदम ने एक नई सोच और नई उम्मीद को जन्म दिया है। यह साबित करता है कि व्यक्तिगत दुख को समाजहित में बदलने का जज्बा अगर हो तो विज्ञान और मानवता दोनों को लाभ मिल सकता है।

Advertisements
Advertisement