छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के एक गांव में ईसाई धर्म के पादरी, पास्टर और धर्मांतरण के लिए आने वाले व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक लगाने को लेकर होर्डिंग लगाई गई है। जिसके खिलाफ ईसाई समाज के लोगों ने जनहित याचिका दायर की थी। हाइकोर्ट ने याचिका में ग्राम पंचायत को पक्षकार नहीं बनाने पर याचिका खारिज कर दी है।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। दरअसल, कांकेर जिले के सुंगली गांव में हाल ही में हुई ग्रामसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया है। जिसमें मसीही पादरियों और धर्मांतरण कराने वाले बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है।
आदिवासी और मसीही समुदाय में चल रहा विवाद
दरअसल, गांव में लगभग 14-15 परिवार मसीही समाज से जुड़े हैं। जिससे स्थानीय आदिवासी समाज के बीच विरोध के स्वर उठने लगे। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी पुरानी परंपराओं और संस्कृति पर इसका असर पड़ रहा है। इसलिए ऐसे किसी भी धार्मिक आयोजन पर रोक लगाई जाती है। इसी प्रस्ताव और गांवों में लगे होर्डिंग्स ‘पास्टर का धर्मांतरण क्रियाकलाप वर्जित’ करने को लेकर जमकर विवाद भी हुआ।
मसीही समुदाय ने हाईकोर्ट में लगाई याचिका
पंचायत के इस फैसले को चुनौती देते हुए दिगबई तांडी और हितेश कुमार दर्रो ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि हर नागरिक को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने का मौलिक अधिकार है। ग्रामसभा के इस निर्णय से उनके धार्मिक नेताओं को गांव आने से रोका नहीं जा सकता।
याचिका में कहा कि ऐसा होर्डिंग लगाना संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। याचिका में बोर्ड तुरंत हटाने और ग्राम पंचायत के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।
राज्य सरकार ने रखा अपना पक्ष
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने दलील दी कि बाहरी लोग गांवों में आकर धर्मांतरण की गतिविधियां चलाते हैं। आदिवासी समाज को उनकी परंपरागत पूजा-पद्धति और मूर्ति पूजन से दूर करने की कोशिश करते हैं। आदिवासी समाज की अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं।
उनकी सुरक्षा के लिए ग्रामसभा ने प्रस्ताव पारित किया है। साथ ही, तकनीकी आपत्ति उठाते हुए कहा गया कि संबंधित ग्राम पंचायत को ही इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया है, जबकि वर्ष 2014 की इसी प्रकार की याचिका में ग्राम पंचायत को पक्षकार बनाया गया था।
हाईकोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने माना कि ग्राम पंचायतों को पक्षकार न बनाए जाने से याचिका तकनीकी रूप से अधूरी है। उन्होंने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। जिस पर डिवीजन बेंच ने अनुमति देते हुए याचिका खारिज कर दी है। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता चाहें तो उचित पक्षकारों को शामिल कर नई याचिका दाखिल कर सकते हैं। साथ ही, जमा की गई सुरक्षा राशि वापस करने का आदेश भी दिया गया।