औरंगाबाद : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बजने से पहले ही रफीगंज विधानसभा सीट एनडीए के लिए सियासी अखाड़ा बन गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रदेश महासचिव प्रमोद कुमार सिंह के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने न केवल औरंगाबाद जिले बल्कि पटना के राजनीतिक गलियारों में भी खलबली मचा दी है. उन्होंने दावा किया है कि लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने उन्हें रफीगंज से “जिताऊ प्रत्याशी” बताते हुए चुनाव की तैयारी करने का आशीर्वाद दे दिया है. चिराग का नाम, प्रमोद सिंह का दावा .यह पूरा सियासी बवंडर प्रमोद कुमार सिंह के एक फेसबुक पोस्ट से शुरू हुआ, जो उन्होंने नई दिल्ली में चिराग पासवान से मुलाकात के बाद साझा किया. अपने पोस्ट में उन्होंने चिराग पासवान को उद्धृत करते हुए लिखा:
अगर पार्टी रफीगंज विधानसभा से आप जैसे जिताऊ प्रत्याशी को चुनाव नहीं लड़वाएगी तो किसे लड़वाएगी? आप चुनाव की तैयारी कीजिए, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं. हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह बयान लोजपा (आर) की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं है, बल्कि प्रमोद कुमार सिंह का व्यक्तिगत दावा है, जिसने रफीगंज में टिकट की दावेदारी को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है.
दावे के सियासी मायने: दबाव या सच्चाई?
प्रमोद सिंह के इस कदम को एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. इसके कई गहरे मायने हैं:
NDA सहयोगियों को सीधा संदेश: इस पोस्ट के जरिए जदयू और भाजपा के उन नेताओं को स्पष्ट संदेश दिया गया है जो इस सीट पर अपनी दावेदारी देख रहे थे। लोजपा ने साफ कर दिया है कि रफीगंज सीट उसकी पहली प्राथमिकता है और वह इसे छोड़ने के मूड में नहीं है.
खुद को “फाइनल कैंडिडेट” बताया: चिराग पासवान का नाम लेकर प्रमोद सिंह ने खुद को एनडीए के अघोषित लेकिन फाइनल प्रत्याशी के रूप में पेश कर दिया है. यह जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भरने और भ्रम की स्थिति को खत्म करने का एक प्रयास है.दबाव की राजनीति का खेल: राजनीतिक विश्लेषक इसे “स्वयंभू टिकट घोषणा” भी मान रहे हैं, जिसका मकसद सीट बंटवारे की औपचारिक बातचीत से पहले ही अपने पक्ष में एक मजबूत माहौल तैयार करना है.
2020 का प्रदर्शन बना दावेदारी का आधार
प्रमोद कुमार सिंह का यह आत्मविश्वास निराधार नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ते हुए लगभग 50,000 वोट हासिल किए थे और दूसरे स्थान पर रहे थे। उनके इस प्रदर्शन ने एनडीए के आधिकारिक उम्मीदवार को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था, जिसका सीधा फायदा राजद प्रत्याशी को मिला और वह चुनाव जीत गए। इसी “वोट बैंक” के आधार पर वह खुद को सबसे मजबूत और “जिताऊ” उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे हैं.
कुल मिलाकर, प्रमोद सिंह के एक पोस्ट ने रफीगंज की लड़ाई को “NDA बनाम महागठबंधन” से पहले “NDA बनाम NDA” बना दिया है। जहां यह पोस्ट उनके समर्थकों के लिए उत्सव का कारण है, वहीं इसने गठबंधन के भीतर एक असहज तनाव को भी जन्म दे दिया है। अब देखना यह है कि चिराग पासवान का यह कथित “आशीर्वाद” प्रमोद सिंह का टिकट पक्का करता है या सीट बंटवारे की मेज पर यह एक नया सियासी तूफान खड़ा करता है।