नेपाल की सरकार की विदाई के बाद नेपाल की युवा शक्ति इसका जश्न मना रही है. 8-9 सितंबर को नेपाल में जो कुछ हुआ उसकी बुनियाद मार्च 2025 में रखी गई थी. 9 मार्च, 2025 को काठमांडू में राजशाही शासन के समर्थन में आंदोलन हुआ था. हजारों लोग इस आंदोलन में शामिल हुए. इस आंदोलन को नेपाल का हैक्टिविज़्म कहा गया. यानी सत्ता और सत्ता के केंद्रों को जनता के नियंत्रण में लेने के लिए सिस्टम को हैक करने वाला आंदोलन.
आंदोलन को काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह का समर्थन था. बालेंद्र शाह मैथिली मूल के मद्धेशी समुदाय से आते हैं. बालेंद्र शाह राजशाही शासन और हिंदू राष्ट्र के समर्थक हैं. सुदन गुरुंग ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया.
ये आंदोलन कुछ ऐसा था जैसा कि नवंबर 2011 में अमेरिका में ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट आंदोलन चला था. अमेरिका में सामाजिक असमानता और पूंजीवाद के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता जुटे थे और नेपाल में नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता ने आंदोलन शुरू किया
बालेंद्र शाह ने रखी आंदोलन की नींव
बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग ने मिलकर लोकतांत्रिक नेताओं के खिलाफ आंदोलन की नींव रखी और 8 सितंबर को काठमांडू में दो अहम घटनाक्रम तय किए गए. एक आंदोलनकारियों ने तय किया और दूसरा ओली सरकार ने.
ओली सरकार ने CPN-UML की संविधान सभा की बैठक बुलाई. सुदन गुरुंग ने 8 सितंबर को काठमांडू में आंदोलन बुलाया. ओली पार्टी संविधान से 2 बार PM बनने की सीमा खत्म करना चाहते थे. गुरुंग सत्ता के खिलाफ आंदोलन को तेज करना चाहते थे. ओली चाहते थे कि पार्टी संविधान से ये नियम हटाया जाए कि 70 साल से ज्यादा का व्यक्ति PM नहीं बन सकता. गुरुंग ने 8 सितंबर को आंदोलन का एलान करते हुए कहा कि सभी छात्र स्कूल यूनिफॉर्म में किताबों सहित आंदोलन में शामिल हों.
नेपाल में राजशाही के समर्थकों का नियंत्रण
9 सितंबर को केपी शर्मा ओली की तीन दिन की बैठक का दूसरा दिन सत्ता का अंतिम दिन साबित हुआ. क्योंकि गुरुंग और शाह के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने सत्ता ही पलट दी.
अब नेपाल के सेंटीमेंट पर राजशाही के समर्थकों का नियंत्रण है और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में फिर से संविधान और राजा ज्ञानेंद्र मिलकर नेपाल पर राज करेंगे.