बलरामपुर में DJ पर नाचते बच्चे की मौत: HC की सरकार को फटकार- शोर प्रतिबंध के बावजूद हादसा कैसे, जल्द लागू हो संशोधित कानून

छत्तीसगढ़ में DJ और साउंड सिस्टम के शोर को लेकर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने एक बार फिर सख्ती दिखाई है। बलरामपुर जिले में गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान डीजे पर नाचते समय 15 साल के बच्चे की हार्ट अटैक से मौत हो गई। इस पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने चिंता जाहिर की है।

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हाईकोर्ट ने पूछा है कि, प्रतिबंध के बाद भी इतनी तेज आवाज में DJ कैसे बज रही थी। अब तक इसके लिए किसकी जवाबदेही तय की गई है। कोर्ट ने इस पर शासन से विस्तृत जवाब मांगा है। वहीं, कोलाहल अधिनियम में संशोधन वाले नए कानून को जल्द लागू करने के निर्देश दिए हैं।

जानिए क्या है पूरा मामला ?

दरअसल, DJ के शोर को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका की सुनवाई चल रही है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने DJ पर जारी मीडिया रिपोर्ट्स को भी जनहित याचिका मानकर सुनवाई शुरू की है। केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देकर राज्य सरकार को कई बार DJ को बैन करने के लिए आदेश दिया है।

लेकिन, इसके बाद भी तेज आवाज वाले DJ पर प्रतिबंध नहीं लगाई जा सकी है। त्योहार और सार्वजनिक कार्यक्रमों में आए दिन तेज और कर्कश आवाज वाले DJ बज रहे हैं।

हाईकोर्ट ने पूछा- रोक के बावजूद तेज आवाज में कैसे बज रहा था DJ

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बलरामपुर जिले की उस घटना को गंभीरता से लिया, जिसमें गणेश विसर्जन के दौरान DJ पर नाचते समय 15 साल प्रवीण गुप्ता की मौत हो गई थी। तेज आवाज में डांस करते समय अचानक उसे सांस लेने में तकलीफ हुई और वह गिर पड़ा। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

हाईकोर्ट ने पूछा है कि रोक के बावजूद इतनी तेज आवाज में DJ कैसे बज रहा था। इस मामले में अब तक किसकी जिम्मेदारी तय की गई है।

बलरामपुर में डीजे पर रोक ही नहीं

सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि बलरामपुर जिले में DJ पर कोई रोक नहीं लगाई गई थी। इसलिए वहां तेज आवाज में डीजे बजते रहे। कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और शासन से पूछा कि आखिर आम लोगों की जान को खतरे में डालने वाली इस स्थिति को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

पुलिस की कार्रवाई पर उठाए सवाल

सुनवाई में बताया गया कि, कोलाहल नियंत्रण अधिनियम, 1985 में कड़े प्रावधान नहीं हैं। एक-दो बार 500 से 1000 रुपए का जुर्माना लगाकर ही छोड़ दिया जाता है। न तो उपकरण जब्त होते हैं और न ही कोई ठोस कार्रवाई होती है। कोर्ट ने कहा कि, ऐसी कमजोर व्यवस्था में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती।

सरकार ने माना- मौजूदा कानून में कमियां

राज्य सरकार ने माना था कि, वर्तमान नियमों में कई कमियां हैं। इसके बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने 27 जनवरी 2025 को एक समिति बनाई थी। जिसे कोलाहल अधिनियम और शोर प्रदूषण नियमों का अध्ययन कर जरूरी संशोधन पर सुझाव देने थे।

समिति ने 13 अगस्त 2025 को अपनी रिपोर्ट दी। कानून विभाग से परामर्श कर कुछ महत्वपूर्ण बदलावों की सिफारिश की। इसके बाद पर्यावरण संरक्षण मंडल ने भी प्रस्तावित संशोधनों पर सहमति जताई। अब यह प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है।

50 डेसिबल से ज्यादा शोर खतरनाक

इधर, रायपुर निवासी ईएनटी डॉ. राकेश गुप्ता ने हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका पेश की है। इसमें बताया कि, वर्तमान में शोर का मानक 50 डेसिबल है। एनआईटी रायपुर और एम्स की रिपोर्ट की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि, 50 डेसिबल से ऊपर की आवाज सीधे मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि लगातार तेज आवाज से सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और मानसिक तनाव बढ़ता है।

त्योहारों में 95 से 110 डेसिबल तक शोर

हाईकोर्ट को यह भी बताया गया कि, हाल ही में हुए त्योहारों के दौरान DJ संचालकों ने मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई। रायपुर और अन्य जिलों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक डीजे के शोर का स्तर 95 से 110 डेसिबल तक रिकॉर्ड किया गया, जबकि निर्धारित सीमा 50 डेसिबल है।

सीजे सिन्हा की बेंच ने कहा कि यह स्थिति न केवल कानून की अवहेलना है बल्कि नागरिकों के जीवन और सेहत के लिए गंभीर खतरा भी है।

पुलिस ने कार्रवाई की, फिर भी लापरवाही

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से माना गया कि कुछ घटनाएं हुईं हैं, लेकिन इस पर कार्रवाई की जा रही है। कई जगह पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर डीजे मशीनें और साउंड सिस्टम जब्त किए हैं। इस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि सवाल उठता है कि इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हुई। अगर लोग कानून से डरते ही नहीं तो इसका मतलब है कि मौजूदा नियम और व्यवस्था कमजोर है।

2000 के संशोधन नियम ज्यादा कठोर

विधि विभाग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया गया कि, ध्वनि प्रदूषण (नियंत्रण और विनियमन) नियम, 2000, राज्य के कोलाहल नियंत्रण अधिनियम, 1985 की तुलना में कहीं अधिक कठोर हैं। 2000 के नियम केंद्रीय अधिनियम के तहत बने हैं और कानूनी रूप से राज्य अधिनियम पर प्रबल हैं।

इन नियमों में लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए अनुमति लेना और ध्वनि सीमा निर्धारित करना अनिवार्य किया गया है। पूर्व की सुनवाई में महाधिवक्ता ने भी स्वीकार किया था कि राज्य सरकार प्रावधानों में संशोधन की तैयारी कर रही है, ताकि ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000 के अनुरूप कड़े प्रावधान लागू किए जा सकें। हाईकोर्ट ने इस मामले में शासन से विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा है।

मुख्य सचिव से मांगा नया शपथ पत्र

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को प्रस्तावित संशोधनों की स्थिति को लेकर अपना व्यक्तिगत शपथ पत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि जब समिति और कानून विभाग दोनों ही बदलाव की जरूरत मान चुके हैं, तो अब नए प्रावधान लागू करने में देर करना उचित नहीं है।

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