चित्तौड़गढ़: बंदर की मौत से गांव में मातम, इंसानों जैसी अंतिम क्रियाएं,11 लोगों ने कराया मुंडन

चित्तौड़गढ़: जिले के भदेसर क्षेत्र के धीरजी का खेड़ा में उस वक्त शोक की लहर दौड़ गई, जब एक बंदर की मौत हो गई. गांववासियों का उस बन्दर से गहरा लगाव और प्रेम था. दरअसल, धीरजी का खेड़ा गांव के खाखल देव मंदिर में पिछले 3 वर्षों से एक बन्दर सभी लोगों का चहेता बना हुआ था.

इन दो सालों में बन्दर ने कभी किसी पर हमला नहीं किया. गांव वालों का उससे इतना लगाव हो गया था कि वह बेझिझक उनके पास आकर बैठ जाता. बंदर की इस शांत और मिलनसार प्रवित्ति को देखकर ग्रामीण उसे परिजन की तरह मानने लगे थे. छोटे बच्चो से लेकर बड़े बुजुर्गों तक,उसने सभी के दिलों में जगह बना ली थी.

खाखल देव की आरती के समय बन्दर भी ग्रामीणों के साथ शामिल हो जाया करता था. जब भी उसे भूख लगती, वह गांव के किसी के घर चला जाता और चुपचाप जाकर बैठ जाता. घरवाले भी उसे अपने उसे परिवार के सदस्य की तरह खाना खिलाते थे.खाना-खाने के बाद वह बिना किसी शोर-शराबे के वापस  खाखल देव मन्दिर आ जाता था.

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पिछले कुछ दिनों से बन्दर बीमार था और अंततः उसकी मौत हो गई. जैसे ही बंदर की मौत की खबर फैली,पुरे गांव में शोक लहर दौड़ गई. उसकी अंतिम यात्रा और क्रियाकर्म उसी विधि -विधान से किए गए,जैसे किसी इंसान के निधन पर परिजनों द्वारा किए जाते हैं.

बन्दर की मृत्यु पर वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया गया, जिसमे गांव के 11 लोगों ने मुंडन संस्कार भी करवाया. पिंडदान भी किया. यही नही बन्दर की अस्थियों को मातृकुंडिया ले जाकर विसर्जित भी किया. बन्दर की मौत पर मुंडन संस्कार और अन्य रस्में करने की चर्चा भी खूब चल रही हैं.

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