नम आंखों से दी गई ‘कटघोरा के राजा’ को विदाई: ऐतिहासिक रहा बप्पा का विसर्जन आयोजन, सड़कों पर उतरा पूरा नगर

कोरबा: गणेश चतुर्थी के समापन के साथ ही कटघोरा नगर में ‘कटघोरा के राजा’ के विसर्जन का आयोजन इस वर्ष भव्यता और ऐतिहासिकता के नए आयाम लेकर आया. इस कार्यक्रम ने न सिर्फ स्थानीय जनता बल्कि आसपास के जिलों से आए श्रद्धालुओं को भी अपने भव्य स्वरूप से मंत्रमुग्ध कर दिया.

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शुभारंभ कसनिया से, नगर में उमड़ा जनसैलाब

विसर्जन शोभायात्रा की शुरुआत बुधवार को कसनिया से हुई. इसके बाद यह नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई शहीद वीरनारायण चौक पहुंची. शोभायात्रा में गणपति बाप्पा की 21 फीट ऊंची विराट प्रतिमा आकर्षण का मुख्य केंद्र रही. यह प्रतिमा इतनी भव्य और जीवंत थी कि दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु और दर्शक उमड़ पड़े.

गणेश विसर्जन यात्रा को और अधिक जीवंत बनाने के लिए इस बार कई सांस्कृतिक झांकियों और दलों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में हनुमान जी की झांकी, शिव अघोरी (वाराणसी), शिव विवाह झांकी, गोरिल्ला मेन (उड़ीसा), लायन ग्रुप (राजनांदगांव) सहित कई मनमोहक प्रस्तुतियाँ शामिल थीं. इन झांकियों ने धार्मिक आस्था के साथ-साथ लोक संस्कृति की विविधता को भी प्रस्तुत किया.

शाही स्वागत में सजी शहीद वीरनारायण चौक

शोभायात्रा के नगर प्रवेश पर शहीद वीरनारायण चौक को भव्य रूप से सजाया गया था. रंगोली, फूलों की सजावट, स्केटिंग शो और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने इस स्थल को उत्सव का मुख्य केंद्र बना दिया. यहाँ आयोजन समिति द्वारा स्वागत मंच स्थापित किया गया था, जहां से गणेश प्रतिमा का अभिवादन किया गया.

हर वर्ष की तरह इस बार भी ‘जय देव गणेश उत्सव समिति’ ने अपनी विशिष्ट सजावट और संगठन क्षमता से लोगों का दिल जीत लिया. इस वर्ष का पंडाल पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल) की थीम पर आधारित था, जिसने दर्शकों को दक्षिण भारत की धार्मिक वास्तुकला की झलक दी और श्रद्धालुओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई.

गणेश प्रतिमा का निर्माण छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के थाना स्थित राधे आर्ट गैलरी द्वारा किया गया था. यह प्रतिमा अपने सौंदर्य, रंग संयोजन और भव्य आकार के कारण विशेष चर्चा का विषय बनी. लोगों ने न सिर्फ दर्शन किए बल्कि सोशल मीडिया पर भी भारी मात्रा में तस्वीरें और वीडियो साझा किए.

आस्था और आनंद का अद्भुत संगम

‘कटघोरा के राजा’ की यह यात्रा महज एक धार्मिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह पूरे समाज के उत्साह, एकता और सांस्कृतिक चेतना की एक झलक थी. भक्ति की गूंज, ढोल-नगाड़ों की धुन, श्रद्धालुओं की आस्था और सांस्कृतिक गौरव का यह संगम वर्षों तक लोगों के स्मृति पटल पर बना रहेगा.

इस विशाल आयोजन को सफल बनाने के लिए प्रशासन और पुलिस विभाग की ओर से विशेष व्यवस्था की गई थी. ट्रैफिक नियंत्रण, भीड़ प्रबंधन, साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा बखूबी निभाया गया. स्वयंसेवकों की टीम और नगर के युवा संगठन भी आयोजन में सक्रिय भूमिका में नजर आए.

समापन पर भावुक विदाई

गणपति बाप्पा की विदाई के समय पूरा माहौल भावुक हो गया. “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के नारों से आसमान गूंज उठा. श्रद्धालुओं ने आंसुओं और श्रद्धा के साथ अपने आराध्य देव को विदा किया. ‘कटघोरा के राजा’ का यह विसर्जन समारोह न सिर्फ धार्मिक उत्सव था, बल्कि एक सांस्कृतिक एकता का उत्सव भी था. भव्य प्रतिमा, आकर्षक झांकियाँ, रंगारंग प्रस्तुतियाँ और श्रद्धालुजन की भारी उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि छत्तीसगढ़ की धरती पर गणेश उत्सव सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति है.

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