सूरजपुर : वन मंडल सूरजपुर में हाथी-मानव द्वंद्व लगातार विकराल रूप लेता जा रहा है.कभी हाथियों की मौत की खबरें आती हैं, तो कभी इंसानों की.खड़ी फसलों को तहस-नहस करने से लेकर घरों को तोड़ने और ग्रामीणों को मौत के घाट उतारने तक, हाथियों का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा.वहीं विभाग की निष्क्रियता और लापरवाही से ग्रामीणों की परेशानी दोगुनी होती जा रही है.
बुधवार की रात प्रतापपुर परिक्षेत्र के गौरा गांव में हाथियों का एक दल स्कूलपारा बस्ती में घुस आया.करीब पच्चीस से तीस हाथियों के इस झुंड ने अचानक हमला कर दिया और ग्रामीण महिला सुबासो पनिका (उम्र 50 वर्ष, पति बृजमोहन, निवासी ग्राम पंचायत गौरा) को मौत के घाट उतार दिया.
घटना उस समय हुई जब हाथियों ने उसके घर को तोड़ना शुरू किया.नींद खुलने पर महिला और उसका पुत्र घर से भागने लगे.पुत्र किसी तरह सोलर टंकी पर चढ़कर बच निकला, लेकिन महिला हाथियों की चपेट में आ गई. एक हाथी ने उसे सूंड से पटककर पैरों तले कुचल दिया.मौके पर ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई.
हमले में न केवल महिला की जान गई बल्कि उसका घर भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया.अनाज और अन्य घरेलू सामग्री पूरी तरह नष्ट हो गई. सूचना मिलते ही रेंजर उत्तम मिश्रा रात में ही मौके पर पहुंचे और शव को पोस्टमार्टम के लिए प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा। पोस्टमार्टम उपरांत शव परिजनों को सौंपा गया तथा मृतका सुबासो पनिका के परिवार को विभाग द्वारा तात्कालिक सहायता राशि के रूप में 25 हजार रुपये प्रदान किए गए.
किसान और ग्रामीण बेहाल
ग्रामीणों का कहना है कि हाथियों का दल पिछले कई दिनों से इलाके में डेरा डाले हुए है.खेतों में पकी धान की फसलें हाथियों के कारण बर्बाद हो रही हैं। ग्रामीण रतजगा कर किसी तरह अपनी जान बचा रहे हैं, लेकिन हर दिन एक नई त्रासदी सामने आ रही है.
विभाग पर सवाल
गौरतलब है कि एक माह के भीतर सूरजपुर वन मंडल में हाथियों के हमले से तीन मौतें हो चुकी हैं.बावजूद इसके वन विभाग के पास न कोई ठोस कार्ययोजना है और न ही ग्रामीणों को सुरक्षित रखने की कोई तैयारी.विभाग की भूमिका महज मुआवजा बांटने तक सीमित होकर रह गई है।
ग्रामीणों का आक्रोश
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि हाथियों को नियंत्रित करने के ठोस कदम जल्द नहीं उठाए गए, तो वे उग्र आंदोलन करने पर मजबूर होंगे। उनका कहना है कि अब यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे इलाके की समस्या बन चुकी है.
समाधान क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि हाथियों और इंसानों के बीच बढ़ते टकराव को रोकने के लिए हाथी कॉरिडोर का संरक्षण, ग्रामीण इलाकों में अर्ली वार्निंग सिस्टम, और तेज आपदा प्रबंधन तंत्र की जरूरत है.खेतों की सुरक्षा के लिए सोलर फेंसिंग, मचान और हाथियों की गतिविधियों पर लगातार निगरानी जरूरी है। विभाग को सिर्फ मुआवजा बांटने से आगे बढ़कर दीर्घकालिक नीति बनानी होगी, तभी इस खूनी संघर्ष पर विराम लग सकेगा.