युवाओं में बढ़ रहा डिप्रेशन और स्ट्रेस, बुजुर्ग रह रहे ज्यादा खुश! एक्सपर्ट्स ने चेताया

दुनिया भर में ज्यादातर युवा नाखुश, परेशान और उदास हैं. एक नई रिसर्च से पता चलता है कि आज का युवा कई तरह की सामाजिक और व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना कर रहा है जिसकी वजह से वो नाखुश, परेशान और उदास है. रिसर्च में खुलासा हुआ कि मिड एज के लोग (आमतौर पर 40 और 60 के बीच) पहले की तरह दुखी नहीं हैं यानी पहले जहां मिड एज में आकर लोगों के साथ इस तरह की मानसिक समस्याएं होती थीं, वो अब छोटी उम्र में हो रही हैं. अब युवा सबसे अधिक तनाव, चिंता और खराब मानसिक स्वास्थ्य का सामना कर रहे हैं. यह रिसर्च चौंकाने के साथ ही इस दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत पर ध्यान केंद्रित करती है.

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युवाओं के बीच बढ़ रही नाखुशी

पुराने अध्ययनों में यह बात पता चली थी कि खुशी उम्र के साथ एक यू-टर्न लेती है. लोग काफी खुश थे जब वो युवा थे, जीवन के मध्य में आकर वो कम खुश थे और बाद के सालों में वो फिर से खुश थे. इससे पता चला था कि मिड एज लाइफ सबसे चुनौतीपूर्ण अवधि होती थी. लेकिन पीएलओएस वन (PLOS One) में पब्लिश नई स्टडी ने इस ट्रेंड में बदलाव का खुलासा किया है.
अमेरिका और ब्रिटेन समेत 44 देशों के लोगों पर 2020 से 2025 तक हुए अध्ययन में यह पाया गया कि मानसिक स्वास्थ्य लगातार उम्र के साथ सुधार करता है. लेकिन आज के युवाओं के बीच यह उल्टा है. अब युवाओं में बहुत ज्यादा तनाव, अवसाद और चिंता के मामले सामने आ रहे हैं. जबकि मिड एज या बुजुर्गों को ऐसी परेशानियों का कम सामना करना पड़ रहा है.
क्यों युवा हैं परेशान

युवाओं में स्ट्रेस, डिप्रेशन और नाखुशी के के पीछे एक्सपर्ट्स कई फैक्टर्स का हवाला देते हैं.

1-चिंता और अकेलेपन के बाद स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना
2-वित्तीय दबाव, मंदी, नौकरी की असुरक्षा और महंगाई
3-बचपन के कड़वे अनुभव जैसे किसी के हाथों बुली होना, किसी तरह अपमान या उपेक्षा झेलना या परिवार में किसी तरह की दिक्कत
4-कोविड 19 के बाद शिक्षा, रोजगार और मेंटल हेल्थ में आई गिरावट

इस रिसर्च में महामारी के बाद से बीमार पड़ने की प्रवृत्ति को भी शामिल किया गया था. साथ ही युवाओं के बीच भय, चिंता और सुसाइडल थॉट्स से समाज पर पड़ने वाले असर का भी जिक्र किया गया.

युवाओं के बीच खराब मेंटल हेल्थ इन दिक्कतों को बढ़ाती है

1-स्लो ट्रीटमेंट (यानी मेंटल स्ट्रेस से किसी भी कंडीशन की धीमी रिकवरी अस्पताल पर समाज पर बोझ को बढ़ा सकती है) और अस्पताल में मरीजों की ज्यादा भर्ती
2-आत्महत्या के आंकड़ों की बढ़ती दर, विशेष रूप से किशोरों और युवा वयस्कों में
3-स्कूल में कम अटेंडेंस और किसी स्किल को सीखने में दिक्कत
4-कम प्रोडक्टिविटी, बढ़ती बेरोजगारी और लेबर फोर्स का कम होना ( इसका मतलब है कि अलग-अलग प्रकार की चुनौतियों की वजह से लोगों की नौकरी या काम में घटती दिलचस्पी वर्कप्लेस के लिए चुनौती बन सकती है जो देश की आर्थिक उन्नति के लिए खतरा है.

युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहराता संकट यह बताता है कि सरकार और एजेंसियों को स्कूलों, कॉलेजों और वर्कप्लेस में मेंटल हेल्थ के लिए काम करने से जुड़ी नीतियां अपनाने और युवा आबादी के बीच फाइनेंशियल स्ट्रेस (यानी पैसों, नौकरी या किसी भी तरह का पैसों से जुड़ा तनाव) और नौकरी की असुरक्षा के डर को कम करने की दिशा में सुधार करने की तुरंत जरूरत है

 

 

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