हथियार का लाइसेंस मौलिक अधिकार नहीं, एमपी हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए साफ कर दिया है कि हथियार का लाइसेंस नागरिक का मौलिक अधिकार नहीं है। अदालत ने हार्दिक कुमार अरोड़ा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पिस्टल और रिवाल्वर का अतिरिक्त लाइसेंस न मिलने को चुनौती दी थी।

Advertisement1

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि किसी भी नागरिक को हथियार का लाइसेंस तभी दिया जा सकता है जब वह उचित कारण और सुरक्षा खतरे को साबित कर सके। याचिकाकर्ता हार्दिक कुमार अरोड़ा ने दावा किया था कि वह कृषक हैं और अपनी आजीविका की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त लाइसेंस चाहते हैं। इसके लिए अशोकनगर कलेक्टर और कमिश्नर ने उनकी सिफारिश भी की थी।

हालांकि, राज्य सरकार की ओर से पेश शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता और उनके परिवार के पास पहले से ही दो लाइसेंस मौजूद हैं—एक 315 बोर की बंदूक और दूसरा 12 बोर की। इसके अलावा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में हथियारों के दुरुपयोग की घटनाओं का हवाला देते हुए अतिरिक्त लाइसेंस की मांग को अनावश्यक बताया गया।

न्यायालय ने कहा कि लाइसेंस देना या न देना प्रशासनिक विवेक का विषय है और अदालत इस पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक कोई व्यक्ति यह साबित न कर दे कि उसे किसी से वास्तविक खतरा है, तब तक उसे हथियार लाइसेंस का अधिकार नहीं है।

हाई कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर न देने का तर्क भी आधारहीन है, क्योंकि उसके आवेदन में कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किया गया था। अदालत ने सिफारिश को भी बिना उचित आधार के मानते हुए खारिज कर दिया।

इस आदेश के साथ याचिका पूरी तरह खारिज कर दी गई। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक शांति और सुरक्षा सर्वोपरि है और ऐसे मामलों में न्यायालय लाइसेंसिंग प्राधिकरण के निर्णय में दखल नहीं देगा।

Advertisements
Advertisement