नेपाल और भारत में पुनः राजतंत्र लागू करने की मांग, शंकराचार्य ने जताया समर्थन

ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने नेपाल और भारत में पुनः राजतंत्र लागू करने की जोरदार मांग की है। उनका कहना है कि राजतंत्र देश की संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के बावजूद कई बार शासन व्यवस्था में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार देखने को मिलता है, ऐसे में राजतंत्र एक स्थिर और अनुशासित शासन प्रदान कर सकता है।

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने बयान में कहा कि नेपाल में राजा की सत्ता समाप्त होने के बाद राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विघटन बढ़ा है। उन्होंने नेपाल सरकार से अपील की कि वह देश में राजतंत्र की बहाली पर गंभीरता से विचार करे। इसके साथ ही उन्होंने भारत में भी राजतंत्र की संरचना और परंपरागत संस्थाओं की समीक्षा करने की आवश्यकता बताई। उनके अनुसार, राजतंत्र केवल सत्ता का साधन नहीं बल्कि देश की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का तरीका है।

शंकराचार्य ने आगे कहा कि राजतंत्र की बहाली से सामाजिक एकता और स्थिरता को बल मिलेगा। उन्होंने दोनों देशों के नागरिकों से आग्रह किया कि वे इस दिशा में विचार विमर्श करें और देशहित में इस विषय को गंभीरता से लें। उनका मानना है कि राजा और धार्मिक नेतृत्व का मेल शासन में नैतिकता और पारदर्शिता लाने में मदद कर सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के साथ राजतंत्र का समन्वय संभव है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कई देशों में संवैधानिक राजतंत्र सफलतापूर्वक चल रहा है, जिससे न केवल शासन प्रणाली स्थिर रहती है बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी सुनिश्चित होता है।

शंकराचार्य की इस मांग को लेकर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक वर्गों में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सही मानते हैं, जबकि कुछ इसे असंगत और असंवैधानिक मान रहे हैं। इस मुद्दे पर आगे और बहस की संभावना है, क्योंकि दोनों देशों की जनता और सरकार की प्रतिक्रिया इस प्रस्ताव की दिशा तय करेगी।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अंत में कहा कि राजतंत्र केवल सत्ता का प्रतीक नहीं बल्कि देश की आत्मा और परंपरा का सम्मान करने का माध्यम है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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