चरगवां के पास ग्राम पंचायत छपरा से जुड़े सिद्धपुरी गांव की हकीकत आज भी देश के विकास के दावों पर सवाल उठाती है। सड़क जैसी बुनियादी सुविधा न होने के कारण यहां के लोगों का जीवन आज भी जोखिम भरा है। इसका सबसे ताजा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला, जब 25 वर्षीय गर्भवती बरसा बाई ठाकुर, पत्नी सतीश ठाकुर, को प्रसव पीड़ा हुई।
स्वजन ने एम्बुलेंस को बुलाया, लेकिन नुनपुर रोड की बड़ी नहर की पुलिया तक ही एम्बुलेंस पहुंच पाई। पुलिया से आगे लगभग दो किलोमीटर तक कच्चा और ऊबड़-खाबड़ रास्ता है, जो बाद में केवल एक पगडंडी में बदल जाता है।
मजबूरन, बरसा बाई को उनके परिजनों और ग्रामीणों ने चारपाई पर लेटाकर गांव से बाहर निकाला। इस मुश्किल घड़ी में उनके साथ उनके स्वजन नन्हेंलाल ठाकुर भी मौजूद थे, जिन्होंने इस बदहाली की पूरी कहानी बताते हुए कहा कि यह समस्या आए दिन की हो गई है।
नेताओं किया केवल वादा
नन्हेंलाल ठाकुर के अनुसार, उन्होंने और गांव के अन्य लोगों ने कई बार ग्राम पंचायत के सरपंच से सड़क निर्माण की गुहार लगाई, लेकिन हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। उन्होंने बताया कि चुनाव के समय सरपंच पद के प्रत्याशी से लेकर विधायक तक सभी पक्की सड़क बनाने का वादा करते हैं, लेकिन पांच साल का कार्यकाल बीत जाने के बाद भी यह वादा अधूरा है।
चुनाव के बाद कोई नहीं लेता सुध
सिद्धपुरी गांव में सैकड़ों की आबादी है और यहां के लोगों को रोजमर्रा के जीवन में भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बच्चों को स्कूल भेजना हो या खेत तक जाना, सड़क न होने से हर काम मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि जब नेताओं को वोट चाहिए होता है तो वे गांव में आकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई उनकी सुध नहीं लेता। इस घटना ने ग्रामीणों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कब तक वे इस उपेक्षा का शिकार होते रहेंगे।