अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के आह्वान पर बलिया समेत सम्पूर्ण भारत में शिक्षकों ने एक साथ टीईटी परीक्षा के खिलाफ हुंकार भरा. इसके अंतर्गत जनपद बलिया में भी राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिला संयोजक राजेश कुमार सिंह के नेतृत्व में भारत सरकार से इस निर्णय के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप करने तथा लाखों शिक्षकों की सेवा सुरक्षा और आजीविका संकट से निजात दिलाने हेतु जिलाधिकारी महोदय के माध्यम से प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया.
जिला संयोजक राजेश कुमार सिंह ने कहा कि जिस समय हमारी नियुक्ति की गई उस समय सरकार के द्वारा सभी नियमों का पालन करते हुए नियुक्ति प्राप्त की। शिक्षा का अधिकार अधिनियम – 2009 पारित होने के पश्चात् वर्ष 2010 से टीईटी अनिवार्य किया गया लेकिन अब सेवा के 20-25 वर्ष पूर्ण करने के पश्चात् अपने ही बनाए नियमों को बदल कर उन अध्यापकों पर टीईटी पात्रता परीक्षा जबरन थोपने का कार्य न्यायालय द्वारा किया जा रहा है. माननीय प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि शिक्षकों के मान – सम्मान तथा उनके पवित्र शिक्षण कार्य को मज़ाक न बनाया जाए और तत्काल शिक्षकों का गौरव वापस दिलाने का कष्ट करें.
जिला सहसंयोजक प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि न्यायालय का यह फैसला शिक्षक विरोधी है. माननीय उच्चतम न्यायालय ने बिना शिक्षकों को संज्ञान में लिए एकतरफा और मनमाना निर्णय सुनाया है जो व्यवहारिक है। इसके लिए भविष्य में जरूरत पड़ी तो अध्यापक दिल्ली तक कूच करेंगे. अध्यापकों के मान – सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा.
सहसंयोजक ज्ञान प्रकाश उपाध्याय ने बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय बिना नियमों को देखे अपना फैसला सुनाया है जो अत्यंत खेदजनक है. भारत सरकार के राजपत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि 2010 से पहले नियुक्त हुए अध्यापकों के चयन व पदोन्नति के लिए टीईटी अनिवार्य नहीं होगा, फिर बीच में ही नियमों की अनदेखी कैसे की जा सकती है. इस फैसले से सम्पूर्ण राष्ट्र का शिक्षक समाज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है जिससे शिक्षण व विद्यालयी कार्यों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. अतः माननीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि न्यायालय के इस फैसले पर पुनः विचार आकृष्ट करने का कष्ट करे जिससे कि अध्यापकों में उत्पन्न निराशा को खत्म किया जा सके.