अपनी जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने आध्यात्मिक गुरु रामभद्राचार्य के विवादास्पद बयान पर कड़ा प्रहार किया है. रामभद्राचार्य ने मनुस्मृति को भारत का पहला संविधान बताया था, जिसे मौर्य ने गलत और अनुचित करार दिया. मौर्य ने कहा कि देश की आजादी के बाद पूरे देश में एक ही संविधान लागू हुआ है, जिसे भारतीय संविधान कहते हैं. रामभद्राचार्य इस तरह के अनर्गल बयान देने के आदी हैं.
उन्होंने कहा कि मनुस्मृति देश का संविधान नहीं थी, बल्कि केवल एक वर्ग की व्यवस्था पोषक थी. यह मनुवादी व्यवस्था का संविधान था, भेदभाव का संविधान था, जात-पात और छुआछूत को बढ़ावा देने वाला संविधान था.
क्या था रामभद्राचार्य का बयान?
रामभद्राचार्य ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि मनुस्मृति भारत का पहला संविधान थी. उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और व्यापक आलोचना का सामना कर रहा है. कई लोगों ने इसे हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाला बताया है.
स्वामी प्रसाद मौर्य की प्रतिक्रिया
समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी जनता पार्टी बनाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामभद्राचार्य के बयान को न केवल गलत बल्कि समाज को बांटने वाला बताया. उन्होंने कहा कि मनुस्मृति को संविधान कहना पूरी तरह से गलत है. यह केवल एक वर्ग की व्यवस्था को पोषित करती थी, जबकि भारतीय संविधान सभी के लिए समान अधिकार और न्याय की गारंटी देता है.
मौर्य ने आगे कहा कि रामभद्राचार्य को बोलने से पहले सोचना चाहिए, क्योंकि ऐसे बयान समाज में नफरत फैलाते हैं और बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रभावित करते हैं. उन्होंने कहा कि यह देश सभी का है, और सभी को यहां रहने का अधिकार है.
कौन हैं रामभद्राचार्य ?
रामभद्राचार्य जिन्हें जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय आध्यात्मिक गुरु और विद्वान हैं. वे जन्म से नेत्रहीन हैं, लेकिन संस्कृत, हिंदी, और अन्य भारतीय भाषाओं में गहन ज्ञान रखते हैं. वे रामायण और भगवत पुराण के कथा वाचक हैं, और उनकी कथाएं भारत और विदेशों में आयोजित की जाती हैं. हाल के दिनों में उनके कई बयानों पर विवाद उठा था, उन्होंने प्रेमानंद महाराज पर भी सवाल उठाया था फिर फिर स्पष्टीकरण भी दिया. इसके अलावा उन्होंने वेस्ट यूपी को मिनी पाकिस्तान कहा जिसकी भी आलोचना हो रही है.