उन्होंने कहा कि संघ ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने से पहले नियुक्ति हुए शिक्षकों की टीईटी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया जाए. हमारे संगठन के वरिष्ठ पदाधाकारियों ने इस संबंध में उच्च स्तर के अधिकारियों व मंत्री जी से बात भी की है. हमारी तरफ से यह मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के 1 सितंबर 2025 को दिया गया. निर्णय शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद से माना जाए.जिलाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने कहा कि नियुक्ति के समय सभी शिक्षकों ने आवश्यक योग्यताएं पूरी की थीं. टीईटी परीक्षा की अनिवार्यता शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के साथ लागू हुई थी. लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसे दबा दिया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित होने वालों में अधिकतर पचास से पचपन वर्ष की आयु वाले वे शिक्षक हैं जो तमाम शारीरिक व्याधियों के बाद भी अपने काम को पूरी लगन और निष्ठा के साथ करने के लिए संघर्षरत हैं. अब उन्हें पढ़ाई करते हुए तैयारी करना संभव नहीं है। अब इस उम्र में नौकरी में आने के बाद टीईटी की अनिवार्यता को थोपना उचित नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार शिक्षकों को टीईटी- यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करनी होगी। अगर वे ये परीक्षा नहीं देते तो उन्हें अवकाश ग्रहण करना होगा. अगर वे फेल हो गए तो शायद उनकी नौकरी ही चली जाए.
प्रदेश मंत्री डॉ. श्वेता और जिला संगठन मंत्री मधुकर सिंह ने बताया कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के निर्णय क्रम में पूरे देश में आज एक साथ सभी जिलों से प्रधानमंत्री को ज्ञापन टी. ई. टी. समस्या समाधान के संबंध में जिलाधिकारी के माध्यम भेजा गया है. अगर इसके बाद भी कानून में संशोधन की प्रक्रिया नहीं बढ़ती है तो राष्ट्रीय स्तर पर आरएसएम की तरफ से बड़ा कार्यक्रम करके शिक्षकों की हित में बात की जाएगी. जिला महामंत्री संजय कनौजिया ने कहा कि हमारे संगठन की मांग है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के पूर्व नियुक्त शिक्षकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा से छूट प्रदान करने हेतु अधिनियम में संशोधन हेतु एक मांग कर रहे हैं। हम लोग प्रधानमंत्री पत्र देश के प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री को सम्बोधित ज्ञापन भेजा गया है.
इस मौके पर अटेवा के संयोजक इरफान अहमद, यूटेक के संयोजक अखिलेश सिंह, वीरेन्द्र सिंह, राजेश शुक्ल, संजय कुमार सिंह, विजय वर्मा, दिनेश सिंह आदि लोग मौजूद रहे.