छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल लगातार 26 दिन से अधिक समय से जारी है। कर्मचारियों की 10 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकार और कर्मचारियों के बीच गतिरोध बना हुआ है। सरकार ने पांच मांगों को पूरा करने पर मौखिक सहमति दी है, लेकिन संविदा कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं। अब प्रशासन ने 16 सितंबर तक का अंतिम अल्टीमेटम जारी किया है। सरकार का कहना है कि यदि कर्मचारी तय समय तक काम पर लौटते नहीं हैं, तो 16,000 पद खाली मानकर नई भर्तियों की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
कर्मचारी इस चेतावनी के बावजूद विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को रायपुर के तूता धरना स्थल पर NHM कर्मचारियों ने रोजगार मेला लगाया। प्रदर्शन के दौरान कुछ कर्मचारी गुपचुप का ठेला, भेलपुरी और चीला-फरा बेचते हुए विरोध जताते दिखाई दिए। इससे पहले कर्मचारियों ने सामूहिक इस्तीफा देकर स्वास्थ्य विभाग को झटका दिया था। रायपुर में 1600, दुर्ग में 850 और रायगढ़ में 500 कर्मचारियों ने इस्तीफा सौंपा था, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया।
सरकार ने 3 सितंबर को 25 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया, जिनमें संगठन के प्रदेश संरक्षक हेमंत सिन्हा और महासचिव कौशलेश तिवारी शामिल हैं। इससे NHM कर्मचारियों का विरोध और तेज हो गया। हड़ताल के कारण स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो गई हैं। कई अस्पतालों में ओटी और प्रसव सेवाएं बंद हैं। प्रशासन ने रात्रिकालीन ओटी और अन्य जरूरी सेवाओं को संचालित करने के लिए नियमित कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं।
कर्मचारी सरकार पर दबाव बनाने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। उन्होंने पीएम, सीएम और स्वास्थ्य मंत्री के मुखौटे पहनकर डांस किया, खून से पत्र लिखा और सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन के वीडियो साझा किए। धमतरी में छत्तीसगढ़ी गाने पर डांस कर विरोध जताया गया। कर्मचारी स्पष्ट कर चुके हैं कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, प्रदर्शन जारी रहेगा।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कि 10 में से पांच मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया गया है और बाकी मांगों के लिए केंद्र से सिफारिश की जाएगी। भाजपा सांसद विजय बघेल और बृजमोहन अग्रवाल ने हड़ताल को जायज ठहराया। कर्मचारियों का आरोप है कि चुनाव के समय भाजपा ने संविदा कर्मचारियों को 100 दिनों में नियमित करने का वादा किया था, लेकिन 20 महीनों में कई ज्ञापन देने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
इस हड़ताल के कारण प्रदेश भर में स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ा है और प्रशासन संविदा कर्मचारियों को काम पर लौटने के लिए लगातार दबाव बना रहा है।