सूरजपुर में 38 करोड़ का एकलव्य विद्यालय: सपनों का मंदिर या भ्रष्टाचार का मकबरा? घटिया निर्माण से उठ रहे सवाल

सूरजपुर: आदिवासी बालिकाओं के सुरक्षित भविष्य और शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करने वाली सरकार और प्रशासन की हकीकत अब सामने आ चुकी है. प्रतापपुर विकासखंड के सरनापारा में 38 करोड़ की लागत से बन रहा एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय आज भ्रष्टाचार और लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण बन गया है. जिस भवन को मजबूती और सुरक्षा की मिसाल बनना चाहिए था, वही अब भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ा होकर ढहने की कगार पर नजर आ रहा है.

ठेकेदार की मनमानी, अधिकारियों की चुप्पी

यह विद्यालय ट्राइबल विभाग के अधीन 34 एकड़ भूमि पर बनाया जा रहा है. निर्माण का टेंडर दिल्ली से जारी हुआ और इसकी निगरानी की जिम्मेदारी सूरजपुर कलेक्टर को दी गई. लेकिन हकीकत यह है कि ठेकेदार खुलेआम मानकों की धज्जियां उड़ा रहा है और कलेक्टर से लेकर विभागीय इंजीनियर तक आंख मूंदकर तमाशा देख रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यह भवन सिर्फ कागजों पर ही मजबूत है, असल में यह भ्रष्टाचार का प्रतीक है.

निर्माण स्थल पर काम कर रहे मजदूरों ने ही इस घोटाले की पोल खोल दी. मजदूरों के मुताबिक, प्लास्टर में 30 तगाड़ी रेत में सिर्फ एक बोरी सीमेंट मिलाया जा रहा है. यह अनुपात किसी भी मानक के खिलाफ है और इससे भवन की मजबूती पूरी तरह संदिग्ध हो जाती है. दीवारों की जोड़ाई इतनी कमजोर है कि हल्का दबाव पड़ते ही दरारें उभर आती हैं. ग्रामीणों ने सवाल उठाया- जब शुरुआत ही घटिया स्तर से हो रही है, तो आने वाले सालों में यह भवन टिकेगा कैसे?

अवैध रेत खनन से पर्यावरण और राजस्व को नुकसान

ग्रामीणों ने यह भी बड़ा खुलासा किया कि निर्माण में प्रयोग हो रही रेत पास की बांक नदी से अवैध खनन के जरिए लाई जा रही है. इस अवैध रेत खनन से शासन को लाखों रुपये का राजस्व नुकसान हो रहा है और पर्यावरण पर भी सीधा असर पड़ रहा है. बावजूद इसके, विभागीय अधिकारी खामोश हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि यह चुप्पी महज लापरवाही नहीं बल्कि ठेकेदार और अफसरों की मिलीभगत का परिणाम है.

दूसरी मंजिल तक निर्माण– शिकायतों का असर शून्य

भवन का निर्माण दूसरी मंजिल तक पहुंच चुका है और प्लास्टर का काम भी तेजी से चल रहा है. लगातार विरोध और शिकायतों के बावजूद काम में कोई रुकावट नहीं आई. ग्रामीणों का कहना है कि अफसरों और ठेकेदार के बीच सांठगांठ के चलते सरकारी धन की खुली लूट हो रही है.

बालिकाओं की सुरक्षा पर मंडराता खतरा

एकलव्य विद्यालय का उद्देश्य आदिवासी और ग्रामीण बालिकाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुरक्षित वातावरण देना है. लेकिन घटिया निर्माण सामग्री से तैयार हो रहा यह भवन आने वाले वर्षों में किसी भी बड़े हादसे की वजह बन सकता है. ग्रामीणों का कहना है कि यह भवन बच्चियों की पढ़ाई और सुरक्षा दोनों के साथ खिलवाड़ है. कस्तूरबा गांधी और एकलव्य विद्यालय जैसी योजनाएं तब तक सफल नहीं हो सकतीं, जब तक ठेकेदार अपनी मनमानी पर अंकुश न लगाएं और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से न निभाएं।

ग्रामीणों का आक्रोश– आंदोलन की चेतावनी

ग्रामीण अब उग्र तेवर अपनाने के मूड में हैं. उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि यदि निर्माण कार्य की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी ठेकेदार और अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की गई तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे. ग्रामीणों का आरोप है कि शिकायतों के बावजूद विभागीय चुप्पी इस बात का सबूत है कि मामला महज लापरवाही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का संगठित खेल है.

कलेक्टर और विभाग पर सवाल

पूरे प्रकरण ने कलेक्टर की निगरानी पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. जब करोड़ों रुपये की परियोजना जिले में चल रही हो, तो कलेक्टर और विभागीय अधिकारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे खुद जाकर काम की गुणवत्ता जांचें. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ठेकेदार को खुली छूट मिली हुई है और अफसर आराम की नींद सो रहे हैं.

भ्रष्टाचार का गढ़ बनता विद्यालय

ग्रामीणों का कहना है कि जिस भवन को आदिवासी बेटियों के सपनों का मंदिर बनना था, वह भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है. ठेकेदार की मनमानी, अफसरों की मिलीभगत और विभाग की चुप्पी ने इस परियोजना को अविश्वसनीय बना दिया है. लोग सवाल उठा रहे हैं- क्या बच्चियों की जिंदगी और भविष्य से खिलवाड़ करने वालों पर कभी कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी बाकी घोटालों की तरह फाइलों में दब जाएगा?

नतीजा– भ्रष्टाचार का एक और सबूत

38 करोड़ का यह एकलव्य विद्यालय अब केवल एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का बड़ा सबूत बन चुका है. जब आदिवासी बच्चियों के नाम पर करोड़ों की राशि लूटी जा रही हो, तो समाज और प्रशासन दोनों को सवाल पूछने चाहिए. अब देखने वाली बात होगी कि क्या शासन-प्रशासन इस मामले पर कड़ा कदम उठाता है या फिर ठेकेदार और अधिकारियों को बचाने के लिए लीपापोती की जाएगी.

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