पत्नी की हत्या के मामले में आरोपी को उम्रकैद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हटाई 20 साल की न्यूनतम सजा

पुणे में पत्नी की हत्या के एक चर्चित मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने आरोपी पति को उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है, लेकिन पहले से तय 20 साल की न्यूनतम सजा को हटा दिया है। न्यायमूर्ति सरंग वी. कोटवाल और न्यायमूर्ति अद्वैत एम. सेठ की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया।

मामला उस समय का है जब आरोपी ने घरेलू विवाद के चलते अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने सुनवाई के बाद आरोपी को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा दी थी और न्यूनतम 20 साल जेल में बिताने का प्रावधान भी तय किया था। आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दलील दी कि कानून के मुताबिक आजीवन कारावास का अर्थ उम्रभर जेल में रहना है, ऐसे में न्यूनतम 20 साल की बाध्यता जोड़ना उचित नहीं है। अदालत ने इस तर्क को स्वीकार किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में स्पष्ट किया है कि उम्रकैद का मतलब है कि दोषी अपनी पूरी जिंदगी जेल में रह सकता है, लेकिन न्यूनतम अवधि तय करना जरूरी नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी को रिहाई का अधिकार तभी मिलेगा जब राज्य सरकार उसके मामले की समीक्षा करेगी और उसे रियायत देने का निर्णय लेगी। इस तरह अदालत ने आरोपी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की, लेकिन हत्या के अपराध में दोषसिद्धि को कायम रखा।

इस फैसले के बाद आरोपी की उम्रकैद की सजा तो जारी रहेगी, लेकिन अब उसके मामले में राज्य सरकार को यह तय करना होगा कि उसे कब और किन परिस्थितियों में रिहाई मिल सकती है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भविष्य के कई मामलों के लिए मिसाल बनेगा। इससे स्पष्ट हुआ है कि अदालतें उम्रकैद की सजा को सख्ती से लागू करने के पक्ष में हैं, लेकिन न्यूनतम अवधि थोपने को आवश्यक नहीं मानतीं। यह फैसला न केवल आरोपी के लिए बल्कि ऐसे अन्य मामलों में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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