फर्जी मान्यता केस में तीन डॉक्टर निलंबित, 55 लाख रिश्वत लेने का आरोप

कर्नाटक सरकार ने रायपुर की एक निजी यूनिवर्सिटी को मान्यता देने में भ्रष्टाचार के मामले में कड़ा कदम उठाया है। मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट ने मंगलवार को तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया। इन पर आरोप है कि इन्होंने 55 लाख रुपए रिश्वत लेकर रायपुर स्थित निजी चिकित्सा विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान को फर्जी तरीके से मान्यता दी।

निलंबित डॉक्टरों में डॉ. चैत्रा एम.एस. (अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु), डॉ. मंजप्पा सी.एन. (ऑर्थोपेडिक्स विभागाध्यक्ष, मंड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) और डॉ. अशोक शेलके (असिस्टेंट प्रोफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, बीदार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) शामिल हैं। इन तीनों को 1 जुलाई 2025 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था।

जांच में सामने आया कि इंस्पेक्शन प्रोग्राम और मूल्यांकनकर्ताओं की पहचान पहले ही कॉलेज प्रशासन को बता दी गई थी। इसके बाद कॉलेज ने दस्तावेजों और रिकॉर्ड को इस तरह से तैयार किया कि मानकों को पूरा करता हुआ दिखे। इस खेल में मध्यस्थों के जरिए रिश्वत का लेनदेन हुआ। इसके बदले कॉलेज को सीट मंजूरी भी मिल गई।

सीबीआई की जांच में यह खुलासा हुआ कि इस पूरे रैकेट में केवल ये तीन डॉक्टर ही नहीं बल्कि मंत्रालय, नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) और अन्य अधिकारियों की संलिप्तता भी हो सकती है। इस मामले में कुल 34 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। निलंबन की कार्रवाई फिलहाल शुरुआती कदम है, आगे और नाम सामने आने की संभावना है।

सरकार का कहना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भ्रष्टाचार किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कर्नाटक मेडिकल एजुकेशन विभाग ने साफ कर दिया है कि जांच पूरी होने तक इन डॉक्टरों को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाएगा।

यह मामला स्वास्थ्य शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। निजी संस्थानों को मान्यता देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और सख्ती की मांग अब और तेज हो गई है।

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