सतना अस्पताल की शर्मनाक हरकत: शव देने के बदले 25 हजार वसूले, परिजनों ने किया हंगामा

जिला में स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही और निजी अस्पतालों की मनमानी का एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। ग्राम शिवसागर निवासी तुलसी दास कोल पिता भूरे लाल, एक आदिवासी मरीज, की इलाज के दौरान मौत हो गई। लेकिन मौत के बाद भी पीड़ित परिवार को चैन नसीब नहीं हुआ। अस्पताल प्रबंधन ने भुगतान का हवाला देते हुए शव देने से इनकार कर दिया।

स्वजनों का आरोप है कि इलाज शुरू होने से पहले उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि आयुष्मान कार्ड से पूरा खर्च कवर होगा। लेकिन बाद में उन्हें 25 हजार रुपये अदा करने को मजबूर किया गया। मौत के बाद जब स्वजन शव लेने पहुंचे, तो अस्पताल ने फिर पैसा मांगते हुए शव रोक दिया।

हताश स्वजनों ने तुरंत लगाई SDM को गुहार

स्वजनों ने SDM सिटी राहुल सिलाडिया को फोन कर पूरी घटना से अवगत कराया। एसडीएम ने तत्काल हस्तक्षेप करते हुए शव परिजनों को दिलवाया और मामले की जांच के निर्देश जारी किए।

जिला अस्पताल से रेफर, लेकिन विशेषज्ञ ही नहीं

तुलसी दास को गैस्ट्रोलॉजी से जुड़ी गंभीर बीमारी थी। जिला अस्पताल समेत पूरे जिले में गैस्ट्रोलॉजिस्ट उपलब्ध नहीं है। मजबूरी में मरीज को निजी अस्पताल भेज दिया गया। स्थानीय लोगों और परिजनों का कहना है कि जिला अस्पताल के कुछ प्रभावशाली चिकित्सक जानबूझकर मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर कर देते हैं। आयुष्मान कार्ड धारकों को योजना का लाभ देने के बजाय उन पर अतिरिक्त खर्च डाल दिया जाता है।

संचालक का पक्ष

अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि मरीज को पहले भर्ती करने से मना कर दिया गया था, लेकिन गुडविल के चलते उसे भर्ती किया गया। संचालक का दावा है कि मरीज की बीमारी आयुष्मान योजना में शामिल नहीं थी, इसलिए इलाज के एवज में सिर्फ 25 हजार रुपये ही लिए गए। उनका कहना है कि बाद में शव परिजनों को सौंप दिया गया।

प्रशासन का रुख

एसडीएम राहुल सिलाडिया ने कहा कि सबसे पहले शव परिजनों तक पहुंचाना जरूरी था। अब जांच की जाएगी कि जिला अस्पताल ने बिना विशेषज्ञ डॉक्टर के मरीज को क्यों रेफर किया और आयुष्मान योजना का लाभ क्यों नहीं दिया गया। मामले में दोषी पाए जाने वालों पर कार्रवाई होगी।

यह घटना स्वास्थ्य तंत्र और निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। आयुष्मान भारत योजना का लाभ गरीब मरीजों को मिलना चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि उन्हें अब भी पैसों के बोझ और अमानवीय रवैये का सामना करना पड़ रहा है।

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