सुप्रीम कोर्ट के बाहर ही हो रही थी सीवर की हाथ से सफाई, सुनते ही भड़के जज, कहा- अधिकारियों को बता दें कि वही…

सुप्रीम कोर्ट के ठीक बाहर सफाईकर्मियों से सीवर की सफाई हाथ से कराने के मामले में दिल्ली सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगा है. सफाईकर्मियों में एक नाबालिग भी शामिल था. सुप्रीम कोर्ट पहले भी मैनुअली सीवर की सफाई की वजह से होने वाली मौतों को लेकर चिंता जता चुका है. कोर्ट ने दिल्ली, मुबंई, कोलकता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में हाथ से सीवर की सफाई पर रोक लगाई है. जब यह मामला सामने आया कि सुप्रीम कोर्ट के बाहर ही ऐसा हो रहा है तो गुरुवार (18 सितंबर, 2025) को कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगादिया.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने जुर्माना लगाने की कार्रवाई इन खबरों के बाद की, जिसमें बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के गेट एफ के बाहर बिना सुरक्षा उपकरणों के मजदूरों को मैनुअल तरीके से सीवर की सफाई के काम में लगाया गया है. बेंच ने कहा कि ये अक्टूबर 2023 के निर्देशों का उल्लंघन है. जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच ने पीडब्ल्यूडी के जवाब पर भी नाराजगी जताई. पीडब्ल्यूडी ने दलील दी थी कि मानसून को ध्यान में रखते हुए सिर्फ ढके हुए नालों से गाद निकालने का काम किया जा रहा था और इसमें अधिकारियों की कोई गलती नहीं थी.

कोर्ट ने चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि न सिर्फ लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को बल्कि अन्य अधिकारियों को भी नींद से जागने की जरूरत है ताकि उसके निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके. कोर्ट ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि अगर ऐसी घटनाएं दोबारा होती हैं तो कोर्ट बीएनएस और बीएनएसएस के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने के लिए बाध्य होगा.’

न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने कहा कि यह घटना स्पष्ट रूप से कोर्ट के बाध्यकारी निर्देशों के प्रति उपेक्षा को दर्शाती है. उन्होंने बताया कि वीडियो साक्ष्य में नाबालिग को काम में लगाए जाने का दस्तावेजीकरण किया गया है और शारीरिक श्रम के लिए मजबूर किए गए लोगों का विशिष्ट विवरण भी उपलब्ध कराया गया है.

सीनियर एडवोकेट ने कहा, ‘नाबालिग को काम पर लगाया गया और यह वीडियो में साफ तौर पर रिकॉर्ड हुआ है. तिलक मार्ग थाने में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की गई, लेकिन न तो पुलिस और न ही लोक निर्माण विभाग ने उचित कार्रवाई की. यह सिर्फ श्रम कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि संवैधानिक दायित्वों का उल्लंघन है. जुर्माना अधिकारियों से ही वसूला जाए.’

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