सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल से कम उम्र की नाबालिग के निजी अंगों को छूने के दोषी को 7 साल की सजा दी है. इस मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दोषी लक्ष्मण जांगड़े को रेप का दोषी ठहराया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रेप मानने से मना कर दिया. कोर्ट ने कहा कि बिना पेनिट्रेटिव सेक्स (निजी अंगों में किसी बाहरी वस्तु के प्रवेश) के अपराध को रेप नहीं कहा जा सकता.
लक्ष्मण जांगड़े ने इस साल 28 जनवरी को आए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 376(AB) यानी 12 वर्ष की लड़की से रेप और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 (नाबालिग से पेनिट्रेटिव सेक्स) के तहत दोषी माना था. पॉक्सो एक्ट की धारा 6 में न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान है. हाई कोर्ट ने उसे 20 साल की सजा दी. इससे पहले 2022 में निचली अदालत ने भी उसे इन्हीं धाराओं में दोषी माना था.
सुप्रीम कोर्ट में जांगड़े के वकील ने कहा कि उसके खिलाफ पेनिट्रेटिव सेक्स का कोई सबूत नहीं है. राज्य सरकार के वकील ने कहा कि 12 साल से कम उम्र की बच्ची का यौन शोषण करने वाले को कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच दोनों पक्षों की दलीलों और अपने निष्कर्ष को दर्ज करते हुए 7 पन्ने का आदेश पारित किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि उसने केस के तथ्यों को बारीकी से देखा है. पीड़िता ने किसी भी बयान में पेनिट्रेटिव सेक्स की बात नहीं कही है. एफआईआर, धारा 164 के बयान और कोर्ट में दिए बयान में कभी भी पीड़िता ने ऐसा नहीं कहा कि दोषी ने उसके साथ पेनिट्रेटिव सेक्स किया. हर जगह निजी अंगों को छूने और दूसरी अश्लील हरकतें करने की बात सामने आई है. ऐसे में यह आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा में नहीं आ सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला रेप की बजाय आईपीसी की धारा 354 के तहत स्त्री की मर्यादा भंग करने और पॉक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत नाबालिक पर यौन हमले का है. ऐसे में कोर्ट ने अब जांगड़े को आईपीसी की धारा 354 के तहत 5 वर्ष और पॉक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत 7 वर्ष की सजा दी है. कोर्ट ने कहा है कि यह दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी.