डीडवाना-कुचामन :नवरात्रि पर आस्था का केंद्र बना लिखासन माता का मंदिर, जहां पृथ्वीराज ने झुकाया शीश और औरंगजेब भी रह गया चमत्कारों से हैरान

डीडवाना-कुचामन: आज से देशभर में शक्ति की साधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहा है. इस बार नवरात्रों की खास बात यह है की इस बार 9 की बजाय नवरात्र 10 हैं यानी आने वाले दस दिनों तक देश के सभी कोनों में देवी पूजा की धूम रहेगी. ऐसे तो देशभर में देवी के इक्कावन शक्तिपीठ है जहां श्रद्धालुओं का लगता है लेकिन शक्ति की साधना के और भी कई केंद्र हैं जहां श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब उमड़ता है ऐसा ही एक स्थान है डीडवाना के नजदीक लिखासन गांव का लिकासन माता का मंदिर है.

जिसकी स्थापना का वैसे तो कोई लिखित इतिहास नहीं है लेकिन ऐसा बताया जाता है कि यहाँ एक नाथ संप्रदाय के संत पागलनाथ ने प्राचीन समय में यहाँ से प्रवाहित जोजड़ी नदी के किनारे बैठकर लंबे समय तक तपस्या की थी. तपस्या के वक्त अपना कमंडल जमीन पर नहीं रख पाने की वजह से उन्होंने अपनी तप की शक्ति से वहां एक पेड़ की एक सूखी टहनी जमीं में रोपंदी जो दूसरे दिन ही खेजड़ी के विशाल पेड़ में तब्दील हो गई जिस पर अपने कमंडल को टाँग कर बाबा पागलनाथ ने यहां तपस्या की. वह खेजड़ी का पेड़ भी हजारों सालों से उस स्थान पर अवस्थित है जिसके बारे में ग्रामीण बताते हैं कि इसकी कोई जड़ नहीं है। बाबा पागलनाथ ने अपनी ईष्ट देवी कोलकाता की काली मंदिर से यहाँ जोत लाकर इस मंदिर की स्थापना की थी.

यहाँ धूना और जोत की स्थापना के बाद कई चमत्कार हुए. किवन्दतियो के अनुसार एक बार एक निसंतान सेठ ने यहां आकर माता से प्रार्थना की जिस पर उसे पांच पुत्र हुए और हर पुत्र की प्राप्ति पर सेठ ने यहां एक देवीय स्तंभ लगवाया, यह स्तम्भ इतने चमत्कारी थे की गांव पर आने वाली किसी भी आपदा पर यहां आकाशवाणी होती थी. मुस्लिम शासक ओरंगजेब को जब इस स्थान के बारे में जानकारी मिली तो उसने इन स्तंभों में स्थित देवियों की मूर्तियो के नाक कान क्षतिग्रस्त कर दिए जिसके बाद से यहाँ आकाशवाणी होनी बंद हो गई.

सम्राट पृथ्वीराज के वक्त जब इन्होंने देवी के चमत्कारों के बारे में सुना तो ख़ुद सम्राट पृथ्वीराज ने इस स्थान के आसपास की अठारह हज़ार बीघा जमीन इस मंदिर के नाम कर दी और इस गांव का नाम भी इसी लिकासन माता के नाम से लिखासन रखा. ऐसा माना जाता है कि सम्राट पृथ्वी राज ने तत्कालीन संत को अपना गुरु मानकर यह जमीन गुरु दक्षिणा में माता के मंदिर के नाम की थी.

इस अठारह हज़ार बीघा जमीन को भी चमत्कारी माना जाता है कहा जाता है कि इस क्षेत्र में कभी चोरी नहीं होती और अगर गलती से कोई यहाँ से कंकड़ भी उठा कर लेकर गया तो वो कंकड़ भी उसे वापस लौटाना पड़ता है. लिखासन माता के मंदिर के सेवकों के लिए बसाए गए लिखासन गांव की ख़ास बात यह है कि इस पूरे गांव में केवल नाथ संप्रदाय के लोग ही रहते हैं और दूसरी जाति का कोई व्यक्ति यहाँ कभी नहीं बस सकता क्योंकि ऐसा करने पर उसे देवी का प्रकोप झेलना पड़ता है.

मंदिर से जुड़े चमत्कार की कई कहानियां हैं लेकिन सबसे नई कहानी है कोलकाता के एक सेठ से जुड़ी हुई है जो मात्र पंद्रह साल पुरानी है. जानकारों के अनुसार कोलकाता के एक उद्योगपति को एक असाध्य रोग हुआ जिसके बाद उसने अपनी कुलदेवी को याद किया तो रात को सपने में देवी ने आकर उसे बताया कि उक्त स्थान पर मेरा मंदिर है वहां जाकर पूजा करो तुम्हारा रोग सही हो जाएगा और उद्योगपति ने ऐसा ही किया तो उसका रोग समाप्त हो गया जिसके बाद उद्योगपति ने कोलकाता से दुबारा आकर ग्रामीणों और पुजारियों से सहमति लेकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और आज मंदिर भव्य स्वरूप में मौजूद है.

इस मंदिर में काली माता का ही दुर्गा स्वरूप की मूर्ति स्थापित है जो चमत्कारी है माता के दर्शन करने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. नवरात्रों में पूरे नो दिन यहां भक्तों का तांता लगता है और हर दिन विशेष आयोजन होते हैं. लिकासन माता का वह मंदिर जहां गांव पर आने वाली आपदा से पहले हो जाती थी आकाशवाणी – ओरंगजेब ने आकाशवाणी करने वाले स्तंभों को करवा दिया था क्षतिग्रस्त.

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