मानगढ़ धाम के इतिहास से छेड़-छाड़ बर्दाश्त नहीं: डूंगरपुर में SFI ने दी चेतावनी, शहीद कालीबाई का किया स्मरण

डूंगरपुर: स्टूडेंट्स फैडरेशन ऑफ़ (एसएफआई) ने मानगढ़ धाम, शहीद वीर बाला कालीबाई के पाठ के साथ छेड़छाड़ कर अन्य कक्षाओं के पाठ में शामिल करने के विरोध में एसबीपी कॉलेज से रैली निकालकर जिला मुख्यालय पर आमसभा की. आमसभा की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष जितेश वरहात ने की. रैली एसबीपी कॉलेज से तहसील चौराहे होते हुए जिला मुख्यालय पर पहुंची आमसभा के बाद मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौपा.

आमसभा को सम्बोधित करते हुए राज्य उपाध्यक्ष फाल्गुन भराड़ा ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 का दुष्प्रभाव इस कदर है कि कल्पना करना मुश्किल हो रहा हैं. नई शिक्षा नीति 2020 में कुछ ही मसौदा ठीक हैं लेकिन नई शिक्षा नीति-2020 के नाम पर आज आदिवासी क्षेत्र के इतिहास को भी नही छोड़ा जा रहा है.

हम देख सकते हैं कि हमारा मानगढ़ धाम शहीद स्थली हो या शहीद वीर बाला कालीबाई का पाठ हो, कक्षा चौथी का पाठ अब कक्षा पांच में हमारा परिवेश में पढ़ाया जाएगा लेकिन पढ़ाया क्या जाएगा कि मानगढ़ धाम में नर-नारी शहीद हुए, जबकि असल में भील आदिवासी शहीद हुए हैं, एकत्रित आदिवासियों को जनसमूह कहा गया जबकि आदिवासी अंग्रेजो के साथ-साथ जागीरदारों द्वारा कर लागू कर देने के ख़िलाफ़ सहित अन्य स्थानीय मांगों पर जागरूकता व भक्ति आंदोलन को तेज करने का था, लेकिन अब अन्य अध्याय में जिक्र नही है.

केवल एक संक्षित में कहानी बनाकर पेश किया है. हम जानते है कि बच्चों की पढ़ाई में शब्द आसान होने चाहिए लेकिन राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा इन पाठों को तोड़मरोड़ नए रूप में तैयार किया है, हमारा परिवेश कक्षा पांच के पाठ में हम देखते हैं तो कही आदिवासी शब्द उपयोग ही नहीं किया है. ऐसे ही पूर्व में शहीद कालीबाई का पाठ गुरुभक्त गर्ल कालीबाई को अब कक्षा सातवी में शामिल किया है. वहीं न ही कालीबाई के आगे भील लिखा है न ही रजवाड़ों में सेनापतियों का जिक्र है जबकि डूँगरपुर के महारावल के सिपाहियों व अंग्रेजो ने मिलकर गोलियां चलाई थी.

आदिवासी जनाधिकार एकामंच के जिलाध्यक्ष गौतमलाल डामोर ने कहा कि बीजेपी-आरएसएस की सरकार आदिवासियों के इतिहास को लगातार ताक पर रखकर धीरे-धीरे खत्म करने का षड्यंत्र बना रही हैं, जिस तरीके से राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद ने सरकार के इशारे पर पाठों में जो संसोधन किया है, ये शर्मनाक हैं. सरकार इतनी गिर चुकी हैं कि आदिवासियों के इतिहास तक को नही बख्स रही हैं, हम देख सकते की भाजपा के लोग आदिवासी भाजपा नेताओं को आगे कर बयानबाजी करवा रहे हैं, आदिवासियों के बीच में फुट डालो राज करो की नीति अपनाकर आदिवासियों को शिक्षा रोजगार से वंचित करने का सीधा उपाय खोज रहे हैं.

बीजेपी के चुने हुए प्रतिनिधि हिन्दू, मुश्लिम, ईसाई जाति धर्म के राजनीति से बाहर नही निकल रहे हैं ऐसी स्थिति में एक चुनोती है आदिवासियों के सामने इतिहास के साथ छेड़छाड़ महापुरुषों के कामों को पाठों में न शामिल करना इनकी आदिवासी विरोधी मानसिकता को दर्शाता है.
एसएफआई ने मांग करी कि दोनों पाठों में बदलाव किए है जिसमें कई शब्दो का हेरफेर किया है, जिसमें सुधार हो, जो पूराने पाठ थे इन्ही को यथावत रूप से पाठ्क्रम में शामिल किया जाए। उक्त मांग का समाधान शीघ्र-अतिशीघ्र किया जाए अन्यथा एसएफआई आंदोलन तेज करेगा जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की रहेगीं

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