जयपुर: में में शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो गए हैं नवरात्रि को लेकर बाजार में घट स्थापना से लेकर मा दुर्गा की मूर्तियां खरीदने और उनके विसर्जन की तैयारी भी जोरों शोरों पर चल रही है,मां दुर्गा के विसर्जन के लिए बनाई जारी यह मूर्तियां विशेष रूप से कोलकाता से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से मंगवाई जा रही है,लगभग 1,500 से 1,600 कट्टे चिकनी मिट्टी के मंगवाए गए हैं,जिसमें लगभग 20 से 25 हजार किलो चिकनी मिट्टी से मां दुर्गा की 50 मूर्तियां तैयार होगी.
जयपुर के बंगाली कारीगरों ने बताया कि सबसे पहले चिकनी मिट्टी से मूर्ति के सांचो में मिटटी भरी जाती है. उसके बाद उन पर मिट्टी की पॉलिश होती है,कुछ समय के लिए उनको सूखने दिया जाता है. मूर्तियों को सूखने के बाद सबसे कठिन कार्य शुरू होता है, मूर्ति की बनावट और उसके नाम के आधार पर उसमें रंग रोगन किया जाता है. कारीगर बताते हैं कि वास्तविक तौर पर देखा जाए तो सामान्य मूर्ति को एक महीने लगता है वही विशेष रूप से मनाई जा रही मूर्ति को लगभग डेढ़ से 2 महीने का समय लगता है.
आमेर रोड स्थित शंकर नगर में इन मूर्तियों को बंगाली कारीगरों द्वारा बनाने का कार्य किया जाता है. शंकर नगर स्थित काली माता मंदिर के अध्यक्ष सोमनाथ बताते हैं कि बंगाली समाज के कारीगरों द्वारा पीओपी से निर्मित मूर्तियां नहीं बनाकर बेची जाती है. इनके द्वारा कोलकाता से मंगवाई गई चिकनी मिट्टी से मूर्तियां बनाई जा रही हैं, जो विसर्जन के बाद 1 से 2 घंटे में ही पानी में समा जाती हैं. मिट्टी से निर्मित मूर्तियां वातावरण को नुकसान नहीं पहुंचती हैं. वहीं, पीओपी से बनी मूर्तियां पानी में नहीं घुलती हैं. काफी लंबे समय तक वह इस पानी में रहकर वातावरण को दूषित करती है.
आमेर रोड स्थित शंकर नगर निवासी बंगाली कारीगर गोलबदेब बताते हैं कि जयपुर में करीब 20 से 25 हजार किलो मिट्टी बंगाल से आती है,वही बांस,सरकंडे के पत्ते,पुआल उत्तर प्रदेश, हरियाणा,मध्य प्रदेश से आते है. जहाँ जहाँ बंगाली कारीगरों की शैली में माँ दुर्गा की प्रतिमा बनाई जाती है. उसकी सजावट का पूरा सारा सामान कोलकाता की कोमोरटुली मार्केट से ही आता है,इनमें रंग,क्ले, कागज के गहने और दुर्गा जी के बालों के लिए स्पेशल जूट तक भी इसमें शामिल हैं.