भोपाल। अपराध या संदिग्ध मौत के मामलों में सबसे अहम सवाल हमेशा यह होता है कि मौत कब हुई। पुलिस और अदालतें इसी आधार पर जांच की दिशा तय करती हैं। अब तक डॉक्टर यह समय शरीर की सतही स्थिति देखकर निर्धारित करते थे, लेकिन यह हमेशा सटीक नहीं होता। इसी चुनौती को देखते हुए एम्स भोपाल में एक अनोखा शोध शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य मौत के समय का अनुमान पहले से कहीं अधिक भरोसेमंद तरीके से लगाना है।
एमडी की छात्रा डॉ. पुष्पांजलि टी. इस विषय पर अध्ययन कर रही हैं। उनके शोध का नाम है ‘द रोल ऑफ रेडियोलाजिकल एंड बायोकैमिकल पैरामीटर्स इन सीएसएफ’, जिसमें मृत व्यक्ति के दिमाग और रीढ़ की हड्डी से निकलने वाले तरल सीएसएफ (सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड) का परीक्षण किया जाएगा। इस तरल की जांच रेडियोलॉजिकल तकनीक से आधुनिक स्कैन और इमेजिंग के जरिए की जाएगी और बायोकैमिस्ट्री से इसमें मौजूद रासायनिक तत्वों और उनके बदलावों को मापा जाएगा।
इस शोध का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दोनों तकनीकों के परिणामों को मिलाकर मौत के समय का अनुमान कहीं अधिक सटीक होगा। इससे हत्या, आत्महत्या या संदिग्ध मौत के मामलों में पुलिस को घटनाक्रम की कड़ियां जोड़ने में आसानी होगी और अदालत में पेश किए जाने वाले सबूत और मजबूत बनेंगे। फारेंसिक मेडिसिन के विशेषज्ञों का मानना है कि यह अध्ययन भारत की वैज्ञानिक क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानक स्थापित कर सकता है।
डॉ. पुष्पांजलि टी. का कहना है कि अब तक पोस्टमार्टम इंटरवल का निर्धारण अनुमान पर आधारित रहा है। उनका उद्देश्य इसे वैज्ञानिक और मापनीय बनाना है। सीएसएफ एक ऐसा तरल है जो मौत के बाद धीरे-धीरे बदलता है। इसके रेडियोलाजिकल और बायोकैमिकल संकेतकों को समझकर एक ऐसी प्रणाली विकसित की जाएगी, जो डॉक्टरों और जांच एजेंसियों दोनों के लिए उपयोगी होगी।
एम्स भोपाल में फारेंसिक मेडिसिन की रिसर्च को नई ऊंचाई दी जा रही है। यह अध्ययन न केवल अपराध की जांच में पुलिस और न्यायालय को मदद करेगा, बल्कि भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नई पहचान भी देगा। संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. माधवानंद कर ने बताया कि यह शोध आने वाले समय में न्यायिक प्रक्रिया और वैज्ञानिक अनुसंधान दोनों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।