उत्तर प्रदेश के कानपुर की ऐतिहासिक परेड रामलीला, जो 148 सालों से लगातार अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है. इस बार भी दर्शकों को भक्ति और कला के अनूठे संगम का साक्षी बनाएगी. श्री रामलीला सोसाइटी परेड के तत्वावधान में आयोजित इस रामलीला में मथुरा की मंडली की ओर से मंचन किया जा रहा है. इस बार की खासियत है कि मंच पर सीता के रूप में अभिनय करने वाला कक्षा आठ का छात्र कार्तिकेय चतुर्वेदी और साधु वेश में रावण की भूमिका निभाने वाले उनके पिता रत्नेश दत्त चतुर्वेदी एक-दूसरे के सामने एक्टिंग करेंगे. यह पिता-बेटे की जोड़ी सीता हरण के प्रसंग को जीवंत करेगी, जो दर्शकों के लिए भावनात्मक और नाटकीय अनुभव होगा.
इस रामलीला में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले 24 साल सूरज चतुर्वेदी दुबई में अकाउंटेंट के रूप में कार्यरत हैं. मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि निवासी सूरज ने एम.कॉम की डिग्री हासिल की है और पिछले आठ सालों से रामलीला में एक्टिंग कर रहे हैं. उनके गुरु व्यास महेश दत्त चतुर्वेदी से उन्होंने एक्टिंग की बारीकियां सीखी हैं. सूरज कहते हैं, रामचरितमानस मेरे लिए सिर्फ एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक है. भगवान राम के त्याग और आदर्शों से मैं प्रभावित हूं.
अंकुर चतुर्वेदी निभाएंगे लक्ष्मण की भूमिका
वहीं, लक्ष्मण की भूमिका में 25 वर्षीय अंकुर चतुर्वेदी नजर आएंगे, जो मथुरा में पैक्ड पानी और शीतलपेय की एजेंसी चलाते हैं. पिछले तीन सालों तक वह राम की भूमिका निभा चुके हैं और इस बार लक्ष्मण के किरदार में दर्शकों का मन मोहेंगे. हनुमान की भूमिका 28 साल के अभिषेक दत्त चतुर्वेदी निभा रहे हैं, जो पहले अहिरावण, बाली और शंकर जैसे किरदारों में अपनी छाप छोड़ चुके हैं. रत्नेश दत्त, जो साधु वेश में रावण का किरदार निभाते हैं. नारद और कुंभकर्ण की भूमिकाओं में भी मंच पर उतरते हैं.
रामलीला का गौरवशाली इतिहास
परेड की रामलीला की शुरुआत 1877 में पंडित प्रयाग नारायण तिवारी ने की थी, जब देश में अंग्रेजी शासन था. उस समय बच्चों को अनंत चतुर्दशी से सोसाइटी में बुलाकर एक्टिंग सिखाई जाती थी. 15 दिन की दीक्षा, मुंडन संस्कार और यज्ञोपवीत धारण के बाद उन्हें मंचन की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी. 1975 तक स्वरूप परंपरा के तहत भगवान के अंशावतार के रूप में बच्चों को तैयार किया जाता था. अब मथुरा की मंडली इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है.
मुकुट पूजन की अनूठी परंपरा
रामलीला की शुरुआत पहले राम वनवास के प्रसंग से होती थी और बीएनएसडी भवन सेक्शन हाल में मंचन किया जाता था. राजगद्दी उत्सव हटिया में मनाया जाता था. वर्तमान में यह आयोजन परेड मैदान में होता है, जहां मुकुट पूजन की परंपरा आज भी जीवित है. यह रामलीला न केवल धार्मिक उत्साह का प्रतीक है, बल्कि कला, संस्कृति और समर्पण का अनूठा संगम भी है. शहरवासियों के लिए यह रामलीला केवल एक नाट्य मंचन नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का जीवंत उत्सव है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है.