सोचिए, आप एक उड़ते विमान में बैठे हों और अचानक उसकी छत ही उड़ जाए. चारों तरफ तूफानी हवा, सामान उड़ता हुआ और यात्री खुले आसमान के नीचे बैठे. सुनकर फिल्मी लगता है, लेकिन 1988 में हवाई में हुआ ये हादसा हकीकत था और चौंकाने वाली बात ये है कि तमाम हालातों के बावजूद 94 लोगों की जान बच गई. आइये जानते हैं 36 साल पुराने उस हादसे की कहानी
अचानक आसमान में टूटा प्लेन
अलोहा एयरलाइंस फ्लाइट 243 जब 24,000 फीट की ऊंचाई पर थी, तभी जोरदार धमाके के साथ उसका बड़ा हिस्सा फट गया. 18 फीट लंबा छत का टुकड़ा हवा में उड़ गया. अंदर का माहौल तूफान जैसा हो गया.
द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, हवा के दबाव से फ्लाइट अटेंडेंट क्लैरेबेल लैंसिंग बाहर खींच ली गईं और उनकी मौत हो गई. लेकिन बाकी यात्री घायल होने के बावजूद बच निकले और इसका श्रेय जाता है कॉकपिट में बैठे बहादुर पायलट्स को.
पायलट्स ने ऐसे बचाई सबकी जान
कैप्टन रॉबर्ट शॉर्नस्टाइमर और फर्स्ट ऑफिसर मैडेलिन टॉम्पकिंस ने तुरंत इमरजेंसी डिसेंट शुरू किया. शोर इतना था कि वे आपस में बात तक मुश्किल से कर पा रहे थे.एक इंजन में आग लग चुकी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.सिर्फ 13 मिनट में उन्होंने टूटा हुआ विमान माउई एयरपोर्ट पर सुरक्षित उतार दिया, जब 24,000 फीट की ऊंचाई पर प्लेन की छत उड़ गई, तो अचानक केबिन का प्रेशर गिरा और ऑक्सीजन की कमी हो गई, जिससे कई यात्री बेहोश हो गए, लेकिन पायलट्स ने तुरंत इमरजेंसी डिसेंट शुरू किया और
विमान को तेजी से 10,000 फीट पर ले आए, जहां हवा में पर्याप्त ऑक्सीजन मौजूद होती है। एविएशन मेडिकल डेटा के अनुसार इतनी ऊंचाई पर इंसान बिना ऑक्सीजन के भी कुछ मिनट तक होश में रह सकता है, और यही वजह रही कि समय रहते नीचे आने पर सभी 94 यात्रियों की जान बच गई।
‘मिरेकल फ्लाइट’ क्यों कहा गया?
ग्राउंड स्टाफ को यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने खराब हालात में प्लेन सही-सलामत उतरा. इसलिए इस घटना को आज भी मिरेकल फ्लाइट कहा जाता है.लेकिन इस बीच यही सवाल था कि आखिर प्लेन की छत कैसे उड़ गई.लेकिन बाद में जांच हुई तो ये साफ हुआ कि विमान काफी पुराना था और ज्यादा फ्लाइट साइकिल्स पूरे कर चुका था. फ्यूजलेज (बॉडी) में मेटल फैटिज क्रेक पड़ चुकी थीं और एयरलाइन की मेंटेनेंस टीम इन्हें सही से पकड़ नहीं पाई.यानी प्रेशर का झटका लगते ही कमजोर हिस्सा टूट गया और छत उड़ गई.