लद्दाख में हाल ही में हुई हिंसा और आगजनी की घटनाओं ने पूरे इलाके को हिला दिया है। इस उपद्रव में चार लोगों की मौत हो गई और करीब सत्तर से अधिक लोग घायल हुए। इसी बीच चर्चा का विषय बन गया है लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक का पाकिस्तान दौरा। यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि वांगचुक लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।
दरअसल, इस साल फरवरी में सोनम वांगचुक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आयोजित “Breath Pakistan” सम्मेलन में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने हिमालयी क्षेत्र और दक्षिण एशिया में पिघलते ग्लेशियरों पर विस्तृत चर्चा की थी। उनका कहना था कि जलवायु संकट किसी सीमा से बंधा हुआ मुद्दा नहीं है और इसके समाधान के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्यावरण पहल “मिशन लाइफ” की भी सराहना की थी।
हालांकि, मौजूदा हालातों को देखते हुए कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब लद्दाख में अलग राज्य का दर्जा और संवैधानिक अधिकारों की मांग को लेकर संघर्ष चल रहा है, तब वांगचुक का पाकिस्तान जैसे संवेदनशील देश में जाना कितना उचित था। आलोचकों का कहना है कि इससे आंदोलन की गंभीरता पर संदेह पैदा हो सकता है और राजनीतिक विवाद और भड़क सकते हैं। वहीं, समर्थकों का मानना है कि वांगचुक का मकसद केवल पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना था, न कि राजनीति करना।
लद्दाख में हाल की हिंसा के बीच वांगचुक ने 15 दिनों तक भूख हड़ताल भी की, जिसे उन्होंने परिस्थितियों को देखते हुए तोड़ा। लेकिन उनके पाकिस्तान दौरे को लेकर उठ रही बहस ने उन्हें एक कठिन स्थिति में ला खड़ा किया है। यह साफ है कि लद्दाख में जनता की आकांक्षाओं और केंद्र की नीतियों के बीच तनाव बढ़ रहा है और ऐसे समय में वांगचुक की विदेश यात्राएं राजनीतिक बहस को और गहरा रही हैं।
अब सवाल यह है कि लद्दाख में उठ रही आवाजों और वांगचुक की पहल को जनता किस नजरिए से देखेगी। क्या इसे एक जिम्मेदार पर्यावरणविद् की कोशिश माना जाएगा या फिर संवेदनशील समय में उठाया गया विवादास्पद कदम? यही मौजूदा बहस का केंद्र है।