झालावाड़: पूर्व महाराजा हरिश्चंद्र सिंह की 105वीं जयंती के अवसर पर झालरापाटन स्थित महाराजा हरिश्चंद्र कृषि उपज मंडी में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस मौके पर उनके जीवन, कार्यों और जनसेवा के प्रति समर्पण को याद करते हुए वक्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. महाराजा हरिश्चंद्र सिंह का जन्म आम्सफोर्ड (इंग्लैंड) में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में और आगे की शिक्षा देहरादून के सेंट जोसेफ व गुजरात में प्राप्त की. उन्होंने उच्च शिक्षा इंग्लैंड से प्राप्त की और 1941 में प्रशिक्षण लेकर 1942 में मुरादाबाद पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षण लिया. उन्हें क्रिकेट, घुड़सवारी और शिकार का विशेष शौक था.
सितंबर 1943 में पिता के निधन के बाद वे झालावाड़ के नरेश बने और जनहित को सर्वोपरि रखते हुए लोगों की सेवा में जुट गए. स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपनी रियासत को सबसे पहले राजस्थान में विलय करने का प्रस्ताव रखा. 1948 में झालावाड़ का भारत में विलय हुआ. दिल्ली जाकर उन्होंने गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से कहा कि वे अब आम नागरिक की तरह जनसेवा करना चाहते हैं. इससे प्रभावित होकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें विदेश सेवा में भेजा, जहां वे रोम में सचिव और फिर रंगून में पदस्थ रहे. लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा और वे वापस झालावाड़ लौट आए.
राजनीतिक जीवन में भी सक्रिय
महाराजा हरिश्चंद्र सिंह ने 1957 में चुनाव जीतकर लोक निर्माण विभाग (PWD) मंत्री के रूप में कार्य किया. उनके कार्यकाल में जिले में पुल, सड़कें और कई विकास कार्य हुए. 1967 में उन्होंने खानपुर से चुनाव जीतकर कई महत्वपूर्ण जनहित परियोजनाएं शुरू कीं. उन्होंने झालावाड़ को जिला बनाने के लिए गढ़ भवन, मदन विलास कोठी, पाटन लाइब्रेरी और भवानी क्रिकेट ग्राउंड जैसी कई कीमती संपत्तियां सरकार को समर्पित कीं. उन्होंने बालिका शिक्षा को भी विशेष बढ़ावा दिया.
जनता से गहरा जुड़ाव
कार्यक्रम में उनके पोते राजराणा चंद्रजीत सिंह ने भी अपने पूर्वजों के जनसेवा और जनता से जुड़ेपन के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि महाराजा हरिश्चंद्र सिंह हर सुख-दुख में जनता के साथ खड़े रहते थे और उनके कार्य आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं. कार्यक्रम में जिलेभर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे. इसी दौरान राजराणा चंद्रजीत सिंह को सक्रिय राजनीति में आने की मांग भी जोर पकड़ती रही. कांग्रेस विधायक सुरेश गुर्जर ने मंच से घोषणा की कि यदि राजराणा राजनीति में आना चाहें तो वे खानपुर सीट छोड़ने को तैयार हैं. राजराणा ने इस पर स्पष्ट कुछ नहीं कहा लेकिन मुस्कुराते हुए कहा, “समय बताएगा.”