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‘भारत अपने फैसले खुद लेने में सक्षम’, UNGA के मंच से रूसी विदेश मंत्री ने बताया कितने गहरे हैं संबंध

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने और दोनों देशों के रिश्तों पर कहा कि हम भारत के राष्ट्रीय हितों का पूरा सम्मान करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिए जो विदेश नीति अपना रहे हैं, हम उसका पूरा सम्मान करते हैं. हमारे बीच बड़े स्तर पर नियमित संपर्क बना रहता है.

लावरोव ने कहा कि भारत और अमेरिका या भारत और किसी अन्य देश के बीच जो स्थितियां उत्पन्न होती हैं, मैं उन्हें भारत और रूस के रिश्तों का मानदंड नहीं मानता. हमारे बीच एक रणनीतिक साझेदारी है, लंबे समय से हम इसे रणनीतिक साझेदारी कहते हैं. एक समय पर हमारे भारतीय मित्रों ने इस शब्द को पूरक बनाने का प्रस्ताव रखा और अब हम इसे विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी कहते हैं.

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान तिआनजिन में मिले थे. और दिसंबर में पुतिन की भारत यात्रा पर जाएंगे. उन्होंने कहा कि हमारा द्विपक्षीय एजेंडा बहुत व्यापक है, जिसमें व्यापार, सैन्य और तकनीकी सहयोग, वित्त, मानवीय मामलों, स्वास्थ्य सेवा, उच्च तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और निश्चित रूप से एससीओ, ब्रिक्स और द्विपक्षीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घनिष्ठ समन्वय शामिल है.

लावरोव बोले- मैं जल्द भारत का दौरा करूंगा

 

लावरोव ने कहा कि इस साल भारत के विदेश मंत्री और मेरे सहयोगी जयशंकर रूस का दौरा करेंगे और मैं भारत का दौरा करूंगा. हमारे बीच नियमित रूस से विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है. लावरोव ने कहा कि मैं यह भी नहीं पूछ रहा कि हमारे व्यापारिक संबंधों या हमारे तेल का क्या होगा. मैं अपने भारतीय सहयोगियों से यह सवाल नहीं करता, क्योंकि वे ये फ़ैसले ख़ुद लेने में पूरी तरह सक्षम हैं.

 

भारत में आत्मसम्मान हैः लावरोव

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक रूप से मेरे मित्र (जयशंकर) ने पहले भी इस तरह के सवाल पर कहा था कि अगर अमेरिका हमें अपना तेल बेचना चाहता है तो हम उसकी शर्तों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन हम दूसरे देशों से, चाहे रूस से हो या किसी और से क्या खरीदते हैं, यह हमारा अपना मामला है. इसका भारत-अमेरिका के एजेंडे से कोई लेना-देना नहीं है. और मेरा मानना है कि यह एक बेहद सराहनीय जवाब है, जो यह दर्शाता है कि तुर्की की तरह भारत में भी आत्मसम्मान है.

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