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गाजीपुर: सिकरवार वंश की कुलदेवी हैं मां कामाख्या, सैनिकों के मां के नाम से हैं विख्यात…

गाजीपुर: शारदीय नवरात्र जिसमें मां के अलग-अलग रूपों का अलग-अलग दिनों में पूजन अर्चन किया जाता है और इस नवरात्र के पवित्र महीने में सभी देवी मंदिरों में काफी भीड़ मां का दर्शन करने के लिए लगता है ऐसा ही एक मंदिर गाजीपुर के करहिया गांव में स्थित मां कामाख्या का मंदिर है जो सिकरवार बंद की कुलदेवी और सैनिकों की मां के नाम से मशहूर है जहां पर इन दिनों नवरात्र के महीने में उनके भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिल रही है और यहां पर सिर्फ उत्तर प्रदेश के ही नहीं बल्कि मा में आस्था रखने वाले बिहार से भी बहुत सारे भक्त प्रतिदिन आ रहे हैं.

गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित करहिया गांव में मां कामाख्या का मंदिर है जो सिकरवार वंश की कुलदेवी बताई जाती हैं यहां के पुजारी ने बताया कि जब देश में औरंगजेब का शासन था तब उसने फतेहपुर सीकरी में भी हमला किया था और उस वक्त सिकरवार वंश ने अपनी कुलदेवी को लेकर फतेहपुर सीकरी को छोड़कर गाजीपुर के इस करहिया गांव में आया था और इसी गांव में मां की स्थापना किया और फिर सिकरवार वंश के लोग इस गांव के आसपास बसे थे. आज यह मंदिर काफी भव्य रूप धारण कर चुका है और लोगों में आस्था है की मां से सच्चे दिल से मांगी गई मन्नत जरूर पूरा होती है ऐसे में नवरात्र में तो भीड़ यहां पर मिलती ही है नवरात्र के अलावा अन्य दिनों में भी माँ के भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

मंदिर के पास में ही गहमर गांव है जो एशिया का सबसे बड़ा गांव भी कहा जाता है और इसी गांव से प्रत्येक घर से एक सैनिक मां भारती के सीमा की सुरक्षा में लगा होता है और सिकरवार वंश के होने के नाते उन सभी सैनिक परिवारों की यह माता कुलदेवी हैं और माँभी अपने बेटों की रक्षा करती आती हैं. बताया जाता है कि जब भी देश में भारत-पाकिस्तान या फिर अन्य किसी देश से जंग होती है और उस जंग में गहमर के बेटे सीमा पर होते हैं तब माँ इस मंदिर को छोड़कर अपने बेटों की सुरक्षा में जंग के मैदान में चली जाती हैं और अपने बेटों की सुरक्षा करती है.

हालांकि इस दौरान मंदिर में मां के मूर्ति की पूजा होती रहती है शायद यही कारण है कि अब तक न जाने कितने जंग हुई लेकिन किसी भी जंग में गहमर गांव का एक भी सैनिक शहिद नहीं हुआ है जिसके कारण सभी सैनिकों की माता कामाख्या में काफी आस्था है लोग बताते हैं कि जब भी सैनिक अपने ड्यूटी पर जाता है तो मां का दर्शन करके ही जाता है और वापस जब अपने घर आता है तो माता का दर्शन करने के बाद ही वह अपने घर को जाता है.

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