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क्या है जिनपिंग का प्रोजेक्ट Sinicization? कम्युनिस्ट एजेंडे के लिए लोगों के धार्मिक विश्वास को कैसे बदल रहा है चीन!

धर्म और धर्म को मानने की आजादी जैसे प्रश्न चीन की कम्युनिस्ट सरकार को हमेशा से असहज लगती रही है. चीन अपने नागरिकों की आस्था जैसे निजी सवालों में दखल देता रहता है और चाहता है कि नागरिक धर्म या मजहब के ऐसे स्वरूप को माने जो चाइनीज संस्कृति, साम्यवाद और चीन के संदर्भ से मेल खाता हो. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोमवार को कहा कि कम्युनिस्ट राष्ट्र में धर्मों को सोशलनिस्ट समाज के साथ “और अधिक अनुकूल” होना चाहिए. उन्होंने चीन में धर्मों के चीनीकरण (Sinicization) के अपने प्रोजेक्ट को और मजबूत करने पर जोर दिया. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चीन में धर्म इस देश के मूल्यों के अनुरुप होने चाहिए.

कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी एक ग्रुप स्टडी सेशन की अध्यक्षता करते हुए शी जिनपिंग ने कहा कि सभी धर्मों-मजहबों को सक्रिय रूप से गाइड किया जाए ताकि ये धर्म चीन की सोशलिस्ट व्यवस्था के अनुकूल हो सके. 2012 में सत्ता में आने के बाद से ही 72 वर्षीय शी जिनपिंग सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की धर्म संबंधी नीतियों को मार्क्सवादी विचारधारा के साथ जोड़ रहे हैं. चीन में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने की वजह से वहां के नागरिक धर्म जैसे मसले में सरकार की दखलंदाजी का विरोध भी नहीं कर पाती है. चीन का कहना है कि नागरिकों के पास धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन लोगों को पार्टी द्वारा निर्धारित मानदंडों के भीतर काम करना चाहिए. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि धर्मों को चीनी परिस्थितियों के अनुकूल कैसे काम करना चाहिए.

2012 से अब तक किए गए सुधारों का उल्लेख करते हुए शी जिनपिंग ने कहा कि पार्टी ने कई नए विचार और उपाय प्रस्तुत किए हैं, जिनमें यह सिद्धांत भी शामिल है कि चीन में धर्मों का मूल स्वरूप चीनी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि चीन में धर्मों को चीनी संदर्भ के अनुसार ढालना, धार्मिक सद्भाव, जातीय एकता, सामाजिक सद्भाव और देश को लंबे समय तक स्थिरता देने के लिए जरूरी है.

क्या है धर्मों का चीनीकरण (Sinicization)?

अब सवाल उठता है कि धर्मों का चीनीकरण क्या है? शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी धर्म के मामले में अपने नागरिकों से क्या अपेक्षा करती है?

सिनिसाइजेशन (Sinicization) या धर्मों का चीनीकरण, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा लागू की गई एक नीति है, जिसका उद्देश्य देश में मौजूद सभी धार्मिक, सांस्कृतिक और जातीय समुदायों को चीनी राष्ट्रीय पहचान और संस्कृति के अनुरूप ढालना है. कहने को तो ये प्रक्रिया धर्मों का चीनीकरण है. लेकिन इसका उद्देश्य साफ है- चीन में जितने भी धर्म के लोग हैं उन्हें निजी परंपराओं और संस्कृतियों को त्यागकर चीनी प्रतीकों और तरीकों को मानना होगा.

यह नीति विशेष रूप से धार्मिक प्रथाओं, परंपराओं और प्रतीकों को चीनी विशेषताओं के साथ जोड़ने पर केंद्रित है. इस प्रक्रिया का राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2018 में अपनी एक स्पीच में जिक्र किया था. जिसमें उन्होंने कहा कि देश में रहने वाले सभी धर्मों को चीनी प्रतीकों और तरीकों को अपनाकर चीनी राष्ट्रीयता से जुड़ना होगा.

कैसे लागू हो रहा है सिनिसाइजेशन?

आप अक्सर खबर पढ़ते होंगे कि चीन में मस्जिदों से गुंबद और मीनारें तोड़ी जा रही हैं और इन्हें चीनी स्थापत्य शैली के अनुसार बनाया जा रहा है. जैसे कि पैगोड़ा शैली, बौद्ध मंदिर की तरह निर्माण. चीन चाहता है कि उसके देश में रहने वाले मुस्लिम अरबी या इस्लामी शैली से इतर चीनी शैली के मस्जिदों में इबादत करें.

चीन में ईसाई चर्चों और बौद्ध मंदिरों को भी चीनी शैली में ढाला जा रहा है, ताकि वे विदेशी प्रभाव के बजाय चीनी संस्कृति का हिस्सा दिखें. चीन का कहना है कि उसके नागरिकों के पास धार्मिक स्वतंत्रता तो है, लेकिन उन्हें पार्टी द्वारा निर्धारित मापदंडों के भीतर ही अपनी आस्था का पालन करना चाहिए.

चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अपने देश में धार्मिक गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण रखती है. धार्मिक स्थलों पर सरकारी निगरानी बढ़ाई गई है, और धार्मिक नेताओं को सीसीपी की नीतियों का पालन करना अनिवार्य है.

उइगर मुस्लिमों और तिब्बती बौद्धों जैसे अल्पसंख्यक समूहों पर सिनिसाइजेशन का प्रभाव सबसे अधिक देखा गया है. उइगरों को “विशेष शिविरों” में भेजा गया, जहां उन्हें चीनी भाषा, संस्कृति और सीसीपी की विचारधारा सिखाई गई है. चीन में पारंपरिक धार्मिक पोशाक या प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, ताकि ये समुदाय चीनी राष्ट्रीय पहचान को अपनाएं. सीसीपी राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति को बढ़ाकर लोगों की निजी और धार्मिक आस्था को चीनी राष्ट्रीय पहचान के साथ जोड़ रही है.

शी जिनपिंग का मानना है कि चीन में धर्मों का प्रसार तभी स्वस्थ रूप से हो सकता है जब उनकी जड़ें हमेशा चीनी संस्कृति में हों और इसके लिए उत्कृष्ट पारंपरिक चीनी संस्कृति के साथ धर्मों के एकीकरण को बढ़ावा देने के प्रयासों की आवश्यकता है. शी जिनपिंग ने कहा कि धार्मिक मामलों का प्रबंधन कानून के अनुसार करना, धर्म के क्षेत्र में विरोधाभासों को दूर कर उन्हें चीनी पहचान से जोड़ना जरूरी है.

तिब्बत में बौद्ध और शिनजियांग में उइगर मुसलमानों की धार्मिक आजादी पर चोट

धर्म पर शी जिनपिंग की यह टिप्पणी तिब्बत और शिनजियांग की उनकी हालिया यात्रा की पृष्ठभूमि में आई है. ये दोनों विशाल प्रांत सात दशकों से भी ज़्यादा समय से सीपीसी शासन और उनके खिलाफ दमन के बाद भी अपनी धार्मिक पहचान बनाए हुए हैं.

तिब्बत आज भी बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र है. हालांकि यहां के बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा काफी पहले ही निर्वासित होकर भारत के धर्मशाला में रहते हैं.
चीन ने तिब्बत में मठों और धार्मिक स्थलों पर कड़ा सरकारी नियंत्रण रखा है. मठाधीशों की नियुक्ति में हस्तक्षेप करती है, और बौद्ध भिक्षुओं की गतिविधियों पर निगरानी रखती है.

चीन ने दलाई लामा जैसे प्रभावशाली नेताओं की भूमिका को कमजोर करने के लिए उनकी चयन प्रक्रिया को ही बदलने की कोशिश की है और इसके अलावा चीन ने दलाई लामा के समानांतर पंचेन लामा के अस्तित्व को खड़ा किया है.

साथ ही चीनी सरकार “देशभक्ति शिक्षा” के नाम पर बौद्ध धर्म को चीनी संस्कृति और कम्युनिस्ट विचारधारा के साथ जोड़ने का प्रयास करती है. और धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित कर वह तिब्बती पहचान को कमजोर करने की कोशिश कर रही है.

शिनजियांग में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उइगर मुसलमानों पर सिनिसाइजेशन नीति के तहत व्यापक दमन कर रही है। उइगरों को “खास शिविरों” में बंद किया गया, जहां उन्हें चीनी भाषा, संस्कृति और सीसीपी की विचारधारा सिखाई गई. मस्जिदों को ध्वस्त किया गया या चीनी शैली में बदला गया. धार्मिक प्रथाओं जैसे नमाज और रमजान पर प्रतिबंध है. यह नीति उइगर संस्कृति और धार्मिक पहचान को मिटाने का प्रयास है.

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