कभी छत्तीसगढ़ की पहली क्षेत्रीय पार्टी मानी जाने वाली छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच अब अपने अस्तित्व की आखिरी सांसें गिन रही है। निर्वाचन आयोग ने पार्टी को वार्षिक लेखा-परीक्षित खाते और चुनावी व्यय रिपोर्ट समय पर नहीं देने के आरोप में कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
आयोग ने साफ कर दिया है कि जवाब नहीं मिलने पर पार्टी का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य 2 और पार्टियों को नोटिस दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक, जिस अन्य 2 पार्टी को नोटिस दिया गया है उसमें छत्तीसगढ़ के करीब 50 हजार सदस्य जुड़े हैं। पार्टी का विस्तार 10 प्रदेशों में हो चुका हैं। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड में पार्टी विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है।
जानिए आखिर नोटिस क्यों मिला?
भारत निर्वाचन आयोग ने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच समेत तीन पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दलों को नोटिस जारी किया है। आयोग का कहना है कि इन दलों ने न तो 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के वार्षिक लेखा-परीक्षित खाते समय पर जमा किए, न ही चुनाव लड़ने के दौरान व्यय रिपोर्ट दाखिल की।
यह सीधे तौर पर आयोग की पारदर्शिता और जवाबदेही संबंधी गाइडलाइन का उल्लंघन है। आयोग ने पार्टी अध्यक्ष को 09 अक्टूबर 2025 तक हलफनामा और आवश्यक दस्तावेजों के साथ अपना पक्ष रखने को कहा है। इसी दिन सुनवाई होगी। जवाब संतोषजनक न होने पर आयोग के पास पार्टी का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार है।
कौन है ताराचंद साहू
- 1 जनवरी 1947 को जन्मे
- राजनीति में कट्टर छत्तीसगढ़िया पहचान के लिए जाने जाते थे।
- 1990 और 1993 में गुंडरदेही से विधायक चुने गए।
- 1996, 1998, 1999 और 2004 में दुर्ग से लगातार सांसद रहे।
- 2001 में भाजपा के पहले प्रदेशाध्यक्ष बने।
- 2008 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में भाजपा से निष्कासित कर दिए गए।
ताराचंद साहू ने 2008 में बनाई थी पार्टी
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की कहानी छत्तीसगढ़ की राजनीति से गहराई से जुड़ी है। इस मंच को 10 अगस्त 2008 को दुर्ग के दिग्गज नेता और छत्तीसगढ़ भाजपा के पहले प्रदेशाध्यक्ष स्व. ताराचंद साहू ने बनाया था।
साहू कट्टर छत्तीसगढ़िया पहचान के लिए जाने जाते थे। वे 1990 और 1993 में अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा से विधायक और 1996, 1998, 1999 व 2004 में लगातार दुर्ग से सांसद रहे।
भाजपा में मजबूत पकड़ रखने वाले साहू को 2001 में छत्तीसगढ़ का पहला प्रदेशाध्यक्ष भी बनाया गया था। लेकिन 2008 में पार्टी विरोधी गतिविधियों और मतभेदों के चलते उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने नया राजनीतिक मंच खड़ा करने का फैसला किया और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की स्थापना की।
छत्तीसगढ़ की पहली क्षेत्रीय पार्टी का टैग
साहू ने जब मंच बनाया तब इसे छत्तीसगढ़ की पहली असली क्षेत्रीय पार्टी माना गया। कांग्रेस और भाजपा के वर्चस्व के बीच साहू ने तीसरा विकल्प खड़ा करने की कोशिश की।
मंच ने विधानसभा चुनावों में सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। हालांकि सफलता नहीं मिली, लेकिन कुछ क्षेत्रों में मंच ने उल्लेखनीय वोट हासिल किए।
2009 में खुद ताराचंद साहू ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर दुर्ग लोकसभा चुनाव भी लड़ा। वे हार गए, लेकिन रिकॉर्ड 2.64 लाख वोट पाकर यह साबित कर दिया कि उनकी जमीनी पकड़ मजबूत है।
शिक्षक से विधायक और सांसद बने ताराचंद साहू
सरकारी स्कूल के शिक्षक रहे ताराचंद साहू 1964 में भारतीय जनसंघ के सदस्य बन गए थे। भारतीय जनता पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद 1982-87 की अवधि में वह दुर्ग जिला भाजपा के सचिव रहे।
इसके बाद 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार उन्हें गुंडरदेही से भारतीय जनता पार्टी की टिकट मैदान में उतारा गया। सामने कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले वासुदेव चंद्राकर से मुकाबला बेहद कड़ा था और 24 वोट से ताराचंद साहू जीते।
1992 में विधानसभा भंग कर दी गई और 1993 में नए चुनाव हुए तो फिर एक बार उन्होंने वासुदेव चंद्राकर को हरा दिया। तब तक साहू भारतीय जनता पार्टी के दुर्ग जिला अध्यक्ष बन चुके थे।
ताराचंद साहू की मौत के बाद बिखरा संगठन
11 नवंबर 2012 को ताराचंद साहू के आकस्मिक निधन ने स्वाभिमान मंच को सबसे बड़ा झटका दिया। करिश्माई नेतृत्व के बिना पार्टी संभल नहीं पाई। उनके बेटे दीपक साहू ने केंद्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन 2014 में उन्होंने मंच का भाजपा में विलय कर दिया।
यही से संगठन टूटने लगा। एक धड़ा भाजपा में चला गया, तो दूसरा धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ जुड़ गया। 2015 में आम आदमी पार्टी में शामिल होने की चर्चाएं भी तेज हुईं, लेकिन यह प्रयोग धरातल पर कभी सफल नहीं हो पाया।
बीजेपी में विलय और ‘घर वापसी’ की कहानी
25 फरवरी 2014 को रायपुर के एकात्म परिसर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मौजूदगी में स्वर्गीय ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू और मंच के करीब 120 पदाधिकारी भाजपा में शामिल हुए। इसे ‘घर वापसी’ कहा गया, क्योंकि दीपक खुद भाजपा और संघ पृष्ठभूमि से जुड़े रहे थे।
डॉ. रमन सिंह ने उस वक्त कहा था कि स्वाभिमान मंच का विलय छत्तीसगढ़ के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। हालांकि, संस्थापक सदस्यों के एक गुट ने इस विलय को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि अध्यक्ष को ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था। इसके बाद मंच दो हिस्सों में बंट गया।
जोगी की पार्टी में आधा संगठन
2016-17 में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जब छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (J) बनाई, तब स्वाभिमान मंच का एक बड़ा धड़ा उनके साथ चला गया। मंच के केंद्रीय अध्यक्ष मन्नूलाल परगनिहा और भोजराम डडसेना जैसे नेता जोगी के साथ हो लिए।
जोगी ने दावा किया कि पूरा मंच उनकी पार्टी में शामिल हो गया है। हालांकि, मंच के कई सीनियर पदाधिकारी जैसे राजकुमार गुप्ता और रजा अहमद ने इस दावे को खारिज किया और अलग कार्यकारिणी बना ली।
आम आदमी पार्टी में भी जुड़ने की चर्चा
2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के कुछ पदाधिकारियों ने ‘आप’ से जुड़ने का फैसला किया। बैठकें भी हुईं, लेकिन आधिकारिक विलय कभी नहीं हो पाया। इस दौरान मंच की जमीनी पकड़ और भी कमजोर होती गई।
अब खत्म हो रही है पार्टी की पहचान
आज हालत यह है कि छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच केवल कागजों पर बचा हुआ है। न कोई जनाधार, न सक्रिय संगठन। निर्वाचन आयोग का नोटिस इसकी रही-सही पहचान पर आखिरी चोट है। जवाब न देने पर पार्टी का पंजीकरण रद्द हो जाएगा और यह पूरी तरह इतिहास का हिस्सा बन जाएगी।
क्यों नहीं बच पाया मंच खुद का अस्तित्व?
- करिश्माई नेतृत्व का अभाव : ताराचंद साहू के बाद कोई नेता उनकी जगह नहीं ले पाया।
- आंतरिक कलह और गुटबाजी: भाजपा और जोगी दोनों के साथ अलग-अलग गुटों के जुड़ने से संगठन कमजोर हुआ।
- स्पष्ट वैचारिक दिशा की कमी: पार्टी ने कभी स्थायी एजेंडा तय नहीं किया।
- बड़े दलों का दबदबा: भाजपा और कांग्रेस के बीच तीसरी ताकत बनने का सपना अधूरा रह गया।
अन्य दो पार्टियों के अस्तित्व पर भी संकट
चुनाव आयोग की ओर से जिन दो अन्य राजनैतिक पार्टियों को नोटिस भेजा गया है उनमें भ्रष्टाचार मुक्ति मोर्चा का नाम भी शामिल है। 1 अक्टूबर 2013 निर्वाचन आयोग में इस पार्टी का पंजीयन हुआ था। इसके प्रदेश अध्यक्ष के रूप में गौकरण निषाद का नाम दर्ज है।
हालांकि अभी पार्टी की वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं है। इसके अलावा पिछड़े और शोषित लोगों के लिए लंबे समय से संघर्षरत पिछड़ा समाज पार्टी यूनाईटेड का गठन भी किया गया था।
पिछड़ा समाज पार्टी यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गिरधर मढ़रिया का नाम जाना जाता है। बताया जा रहा है कि पार्टी के छत्तीसगढ़ में करीब 50 हजार सदस्य हैं। पार्टी का विस्तार 10 प्रदेशों में हो चुका हैं। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड में पार्टी विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है। लेकिन अब आयोग ने इन्हें भी नोटिस जारी किया है।