दिल्ली हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा है कि अगर कोई संपत्ति पति-पत्नी दोनों के नाम पर रजिस्टर्ड है और दोनों ने मिलकर खरीदी है, तो पति केवल यह कहकर उसका पूरा मालिकाना हक नहीं मांग सकता कि उसने EMI चुकाई थी. न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और हरिश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने इस मामले में टिप्पणी की.
2005 में ली थी संपत्ति
कोर्ट ने साफ किया है अगर कोई पति ऐसा करता है तो ये दावा बेनामी संपत्ति कानून की धारा 4 के खिलाफ होगा. इसके तहत किसी और के नाम पर हुई संपत्ति पर असली मालिक होने का दावा करके मुकदमा करने से रोका जा सकता है. पत्नी ने हाई कोर्ट में कहा कि अधिशेष राशि का आधा हिस्सा उसका है, क्योंकि यह हिंदू कानून में महिला की निजी संपत्ति है. ऐसे पर उस संपत्ति पर उस महिला का पर पूरा हक है.
याचिका के मुताबिक, इस मामले में दोनों की शादी 1999 में हुई थी. 2005 में उन्होंने मुंबई में एक घर मिलकर खरीदा. लेकिन, 2006 में वे अलग हो गए और उसी साल पति ने तलाक की अर्जी दी, जो अभी तक कोर्ट में चल रहा है.
हालांकि, फ्लैट को बैंक ने बेच दिया क्योंकि लोन की रकम चुकाई नहीं गई थी. लेकिन इसके बचे हुए पैसे को जोड़ने के बाद 1.09 करोड़ रुपये HSBC बैंक को दिया गया. तलाक की प्रक्रिया चल रही थी, उसी दौरान पति ने 2012 में बैंक से 1.09 करोड़ रुपये की राशि लेने के लिए एक अर्जी दायर की.
दिल्ली हाई कोर्ट में पत्नी का तर्क?
पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. पत्नी ने यह तर्क दिया था कि बेचे जाने की राशि को दोनों पक्षों के बीच बराबर बांटा जाना चाहिए. दिसंबर 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि 50% राशि पति के पक्ष में जारी की जाए. फिर 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल (आरजी) को शेष 50% राशि को यूको बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट में रखने का निर्देश दिया.