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वक्त बदला पर दस्तूर नही: धमतरी के इस गांव में नही होता रावण दहन, जानें वजह…

 

धमतरी:भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा को पूरा देश धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान रावण वध की नाट्य भी प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन धमतरी में एक गांव ऐसा भी है, जहां वक्त बदल जाने के बाद यहां का दस्तूर नही बदली। दशहरा मनाई तो जाती है लेकिन रावण दहन नहीं किया जाता है.  इसके पीछे एक महिला के सती होने की कहानी है. यहां लोग सभी त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन किसी भी चीज का दहन नहीं करते.

धमतरी के तेलीन सत्ती गांव में रावण दहन नहीं किया जाता है. इस गांव में किसी भी त्यौहार में कुछ भी दहन नहीं किया जाता. चाहे वह होलिका दहन हो या फिर दशहरा में रावण दहन या चिता का दहन. यहां त्यौहारों में किसी भी प्रकार की अग्नि नहीं दी जाती. ये प्रथा 12वीं शताब्दी से चली आ रही है. बुजुर्गों ने इस परम्परा को कायम रखने के लिए सभी को कहा है, जिसे निभाया जा रहा है.
क्या है मान्यता के पीछे की कहानी: 
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि “इस प्रथा को तोड़कर सत्ती माता को नाराज करने वालों ने या तो संकट झेला है या उनकी जान ही चली गई. इसके पीछे की वजह मान्यता को बताया जाता है. 12 वीं शताब्दी में गांव का एक व्यक्ति तालाब का पानी रोकने खुद ही मिट्टी के बांध के साथ सो गया और उसकी मौत हो गई. इसकी खबर मिलते ही उसकी पत्नी सती हो गई. तबसे ही वो पूजनीय हो गई. गांव का नाम भी उसी सती के नाम पर तेलिन सती रखा गया है.
भानुमति के सती होने से जुड़ी है कहानी:
ग्रामीण बताते हैं कि भानपुरी गांव के दाऊ परिवार में सात भाइयों के बाद एक बहन जन्मी. बहन का नाम भानुमति रखा गया. भाइयों ने अपनी इकलौती बहन के लिए लमसेना यानी घरजमाई ढूंढा. दोनों की शादी तय करी दी गई. लेकिन गांव के ही किसी तांत्रिक ने फसल को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए जीजा की बलि की सलाह दी. इसके बाद भाइयों ने मिलकर अपने होने वाले जीजा की बलि चढ़ा दी. इधर भानुमति पहले ही उसे अपना पति मान चुकी थी, लिहाजा उसने खुद को आग के हवाले कर दिया और सती हो गई.
इस गांव में चिता जलाना भी है मना:
इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं बल्कि रावण दहन और चिता जलाना भी मना है. किसी की मृत्यु होने पर पड़ोसी गांव की सरहद में जाकर चिता जलाई जाती है. इनका मानना है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता तो, गांव में कोई न कोई विपत्ति आती है. इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती है. डिजिटल युग में जीने वाले आज के युवा भी इस प्रथा को अपना चुके हैं. इस गांव में हर शुभ काम तेलिनसती का आशीर्वाद लेने के बाद ही किया जाता है.
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