डोंगरगढ़ में शारदीय नवरात्र के समापन पर मां बम्लेश्वरी मंदिर से निकली शोभायात्रा के दौरान अनोखी परंपरा देखने को मिली। इस अवसर पर 901 ज्योति कलशों का महावीर तालाब में विसर्जन किया गया, जिसके चलते मुंबई-हावड़ा मुख्य रेलवे लाइन पर रेल यातायात 3-4 घंटे तक पूरी तरह रुक गया। यह परंपरा डोंगरगढ़ की रियासत कालीन विरासत का हिस्सा है और दशकों से श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखती है।
विसर्जन यात्रा के मार्ग में आने वाली मुंबई-हावड़ा रेलवे लाइन पर भारतीय रेलवे ने दोनों ओर से आने वाली गाड़ियों को रोक दिया। यह व्यस्त रेलखंड लगभग तीन से चार घंटे तक मेगा ब्लॉक पर रहा, ताकि श्रद्धालु और परंपरा का सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।
इस परंपरा की नींव रियासत काल में रखी गई थी। खैरागढ़ के तत्कालीन शासक राजा लाल उमराव सिंह ने 21 अगस्त 1883 को ब्रिटिश सरकार और बंगाल-नागपुर रेलवे के साथ समझौता किया था। इसमें डोंगरगढ़ स्टेशन पर रेलों के ठहराव और नवरात्र के समय ज्योति विसर्जन यात्रा के लिए रेल पटरियों पर ब्लॉक देने की शर्त रखी गई थी। इस शर्त का पालन आज भी किया जाता है, जिससे डोंगरगढ़ की पहचान में यह परंपरा शामिल हो गई है।
शोभायात्रा 1 अक्टूबर की रात मंदिर से शुरू हुई। महिलाएं सिर पर ज्योति कलश उठाए मां बम्लेश्वरी की जयकारों के साथ आगे बढ़ीं। हजारों श्रद्धालु इस भव्य दृश्य को देखने डोंगरगढ़ पहुंचे। महावीर तालाब किनारे आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला, जहां लोग परंपरा और धार्मिक उत्साह का अनुभव कर सके।
स्थानीय प्रशासन और रेलवे ने इस दौरान सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष इंतजाम किए। यात्रियों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रेलवे ने ब्लॉक की अवधि के दौरान मार्ग पर पुलिस और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की।
डोंगरगढ़ में यह विसर्जन सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि इतिहास, आस्था और परंपरा का मिश्रण है। वर्षों से यह परंपरा देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती रही है। महिलाएं कलश लेकर यात्रा करती हैं और इस दौरान तीन से चार घंटे कोई ट्रेन नहीं आती, जिससे रेल यातायात पूरी तरह थम जाता है।