अयोध्या: राम की नगरी अयोध्या में दशहरे पर मंच सजता है, लेकिन इस मंच की सबसे खास बात यह है कि इसमें न राम हिंदू होते हैं, न रावण. बल्कि यहां हनुमान से लेकर रावण तक, पूरी रामलीला के किरदार मुस्लिम युवा निभाते हैं. यह परंपरा कोई आज की नहीं, बल्कि 1963 से लगातार 62 सालों से निभाई जा रही है.
सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखी मिसाल
मुमताज नगर में आयोजित होने वाली इस रामलीला का खर्च भी पूरा मुस्लिम समुदाय उठाता है। रामायण समिति के अध्यक्ष डॉ. सैयद माजिद अली बताते हैं कि यह परंपरा हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. यहां मुस्लिम युवक गर्व से रावण, सैनिकों और साधुओं की भूमिका निभाते हैं, जबकि राम, सीता और लक्ष्मण जैसे पूजनीय पात्र अलग से निभाए जाते हैं.
धन की परवाह किए बिना निभाते हैं जिम्मेदारी
गांव की लगभग 1000 आबादी में 700 से अधिक मुस्लिम रहते हैं और सभी अपनी आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना योगदान देते हैं. जो लोग पैसा नहीं दे पाते, वे रामलीला की तैयारी में हाथ बंटाते हैं. इस साल धन की कमी के कारण रामलीला 10 दिन की जगह 7 दिन तक ही चल पाई.
मोहम्मद नसीम कहते हैं, “हमें इस परंपरा पर गर्व है, यह न सिर्फ हमारे हिंदू भाइयों की सेवा है, बल्कि असल मायनों में सांप्रदायिक सौहार्द की झलक है.”