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पहली बार स्किन Cells से इंसानी अंडे बनाए… बांझपन का नया इलाज

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि सिर्फ आपकी त्वचा की कोशिकाओं से डॉक्टर एक इंसानी अंडा बना सकें? जी हां, वैज्ञानिकों ने ऐसा ही कमाल कर दिखाया है. अमेरिका के ओरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पहली बार साधारण त्वचा की कोशिकाओं के डीएनए से ऐसे अंडे-जैसे कोशिकाएं बनाई हैं, जो पुरुष के शुक्राणु से जुड़ सकती हैं. बच्चे का विकास शुरू कर सकती हैं. यह खोज बांझपन से जूझ रहे लाखों लोगों के लिए एक बड़ी उम्मीद है. लेकिन अभी इसे असली इलाज में बदलने में कम से कम 10-15 साल लग सकते हैं.

बांझपन की समस्या क्या है?

दुनिया भर में करोड़ों लोग बांझपन से परेशान हैं. बांझपन का मतलब है कि एक साल तक कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण न होना. इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे शुक्राणु या अंडे की समस्या. कभी-कभी कैंसर जैसी बीमारियां या उम्र बढ़ने से अंडे कमजोर हो जाते हैं. आजकल महिलाओं में अंडे की संख्या और गुणवत्ता कम होना आम समस्या है. पुरुषों में भी शुक्राणु की कमी हो सकती है.

वैज्ञानिकों का लक्ष्य है कि मरीज के खुद के जेनेटिक मटेरियल से ही अंडे या शुक्राणु बनाए जाएं. इसे इन विट्रो गैमेटोजेनेसिस (आईवीजी) कहते हैं. चूहों में यह पहले ही सफल हो चुका है, लेकिन इंसानों में पहली बार यह कामयाबी मिली है.

egg made from human skin

कैसे बनाए गए ये अंडे?

इस खोज की अगुआई क्लिनिकल बायोलॉजिस्ट नुरिया मार्टी-गुटिएरेज ने की. उन्होंने एक नई तकनीक विकसित की, जिसका नाम है ‘माइटोमियोसिस’. यह प्रकृति की कोशिका विभाजन प्रक्रिया की नकल करती है.
साधारण शब्दों में समझें…

  • पहले, मां या पिता की त्वचा की कोशिका का न्यूक्लियस (जिसमें डीएनए होता है) निकाला जाता है.
  • यह न्यूक्लियस एक डोनर अंडे में डाला जाता है, जिसका अपना न्यूक्लियस पहले हटा दिया गया होता है.
  • अब इस नए अंडे में 46 क्रोमोसोम (जो शरीर की कोशिकाओं में होते हैं) आ जाते हैं. लेकिन अंडे में सिर्फ 23 क्रोमोसोम होने चाहिए.
  • माइटोमियोसिस तकनीक से आधे क्रोमोसोम (23) को बाहर निकाल दिया जाता है. इससे अंडा ‘हैप्लॉइड’ हो जाता है, यानी सही आकार का.
  • फिर, दूसरे माता-पिता के शुक्राणु से इसे निषेचित (फर्टिलाइज) किया जाता है. इससे एक डिप्लॉइड जाइगोट (भ्रूण) बनता है, जिसमें 46 क्रोमोसोम होते हैं – आधे मां से, आधे पिता से.

वैज्ञानिकों ने डोनर्स से त्वचा और अंडे लिए. इससे 82 काम करने वाले अंडे बने. इनमें से ज्यादातर शुक्राणु से जुड़ गए. लेकिन विकास में कुछ रुकावटें आईं.

परिणाम कैसा रहा?

  • 82 अंडों में से ज्यादातर 4 से 10 कोशिकाओं के स्टेज पर रुक गए.
  • करीब 9 प्रतिशत अंडे ब्लास्टोसिस्ट (भ्रूण का शुरुआती रूप) तक पहुंचे. यह दर कम है, लेकिन यह पहली सफलता है.
  • प्रयोग छठे दिन रोक दिया गया, क्योंकि इसी समय भ्रूण को गर्भाशय में डाला जाता है.
  • समस्या यह थी कि क्रोमोसोम बाहर निकालना रैंडम था, इसलिए कुछ भ्रूणों में क्रोमोसोम की गड़बड़ी थी. इससे बच्चा स्वस्थ नहीं हो सकता.

egg made from human skin

ओबी/जीवाईएन और प्रजनन एंडोक्रिनोलॉजिस्ट पाउला अमाटो ने कहा कि अगर भ्रूण में 23 जोड़ों के क्रोमोसोम सही न हों, तो वह सामान्य रूप से विकसित नहीं होगा. हम अब क्रोमोसोम को बेहतर तरीके से जोड़ने और अलग करने की कोशिश कर रहे हैं.

यह तकनीक क्यों खास है?

पहले सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक इस्तेमाल होती थी, लेकिन उसमें महीनों लगते थे और जेनेटिक गड़बड़ियां आती थीं. नई तकनीक समय बचाती है और कम गलतियां करती है. अमाटो ने बताया कि हम परिपक्व अंडे की कोशिका मशीनरी का इस्तेमाल करते हैं. इससे सोमैटिक कोशिका को फिर से प्रोग्राम करना आसान हो जाता है. यह आईवीजी का एक रूप है, जो मरीज के खुद के डीएनए से बच्चा बनाने का रास्ता खोलता है.

चुनौतियां और भविष्य

अभी कई मुश्किलें हैं…

  • क्रोमोसोम की सही व्यवस्था.
  • नैतिक सवाल: क्या यह सुरक्षित है? क्या इससे जेनेटिक बदलाव होंगे?
  • तकनीक को परफेक्ट करने में कम से कम 10 साल लगेंगे.

फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट यिंग चेओंग (साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी, यूके) ने कहा कि पहली बार दिखाया गया कि शरीर की साधारण कोशिकाओं का डीएनए अंडे में डालकर सक्रिय किया जा सकता है. यह शुरुआती लैब काम है, लेकिन भविष्य में बांझपन और गर्भपात को समझने में क्रांति ला सकता है. शायद एक दिन उन लोगों के लिए अंडे या शुक्राणु-जैसे कोशिकाएं बनें, जिनके पास कोई विकल्प न हो.

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