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कोरबा में आदिवासी मछुआरों का मत्स्य नीति के खिलाफ विरोध, निविदा रद्द करने की मांग।

कोरबा के बुका जल विहार में आदिवासी मछुआरा संघ ने छत्तीसगढ़ सरकार की मत्स्य नीति 2022 के विरोध में प्रदर्शन किया। सैकड़ों की संख्या में एकत्रित हुए मछुआरों ने हसदेव जलाशय में मत्स्य पालन के लिए जारी निविदा को रद्द करने की मांग की। उन्होंने 6 अक्टूबर को पोड़ी एसडीएम कार्यालय का घेराव करने की चेतावनी भी दी है।

यह प्रदर्शन पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के बांगो बांध परियोजना से विस्थापित 52 गांवों के स्थानीय आदिवासियों की ओर से किया गया। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने भी विस्थापितों की मांगों का समर्थन करते हुए मत्स्य पालन के लिए जारी टेंडर को रद्द करने और बांगो डैम से प्रभावितों को मछली पकड़ने का अधिकार देने की मांग की।

पूरी तरह डूब गए थे 58 आदिवासी गांव

छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने बताया कि 1980 के दशक में हसदेव नदी पर बांगो बांध के निर्माण से 58 आदिवासी बहुल गांव पूरी तरह डूब गए थे। विस्थापितों को मुआवजा और पुनर्वास देने में सरकार की ओर से गंभीर विसंगतियां सामने आईं। तत्कालीन कलेक्टर ने विस्थापितों को आश्वासन दिया था कि वे डूब क्षेत्र में मछली पालन कर अपना जीवन यापन कर सकेंगे।

मछुआरा सहकारी समितियों का गठन

इस आश्वासन के बाद कई मछुआरा सहकारी समितियों का गठन किया गया और विस्थापित परिवारों ने चार-पांच साल तक रॉयल्टी के आधार पर मत्स्य पालन किया। हालांकि, बाद में छत्तीसगढ़ सरकार ने बांगो बांध को ठेके पर देने का निर्णय लिया। इससे मछली पालन पर नियंत्रण निजी ठेकेदारों के पास चला गया और स्थानीय विस्थापित आदिवासी अपने ही जल क्षेत्र में मजदूर बन गए।

उग्र आंदोलन की चेतावनी दी

आदिवासी मछुआरा संघ (हसदेव जलाशय) के फिरतू बिंझवार ने बताया कि 2003 और वर्तमान 2022 की मत्स्य नीति में भी इसी व्यवस्था को जारी रखा गया है, जिसमें मत्स्य महासंघ को एक हजार हेक्टेयर के बड़े जलाशय को ठेके पर देने का अधिकार है। किसान सभा ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार आदिवासी मछुआरों की मांगें नहीं मानती है, तो आंदोलन को सड़कों पर उतरकर तेज किया जाएगा।

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