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बच्चे की लाश जयपुर मंगवाया, अस्पताल ने निकाल ली आंखें! अंतिम संस्कार के दौरान खुली पोल

राजस्थान की राजधानी जयपुर से एक ऐसी खबर आई है, जिसने हर किसी को अंदर तक हिला दिया. यह कहानी है करौली जिले के टोडाभीम इलाके में रहने वाले 10 वर्षीय मासूम समर मीना की. समर की मौत सिर पर लोहे की चादर गिरने से हुई. लेकिन परिजन को सबसे बड़ा सदमा तब लगा, जब अंतिम संस्कार के दौरान यह सच सामने आया कि बिना किसी घरवालों के अनुमति के बच्चे की दोनों आंखें उसके शव से निकाल ली गई थीं.

उस दिन गर्मी थोड़ी कम थी, बच्चे खेलकूद में मग्न थे और गांव की गलियों में चहल-पहल थी. समर भी अपने दोस्तों के साथ पास ही खेल रहा था. तभी अचानक एक भारी लोहे की चादर ऊपर से गिर पड़ी और सीधे उसके सिर पर आ गिरी. पल भर में खेल का मैदान मातम में बदल गया. गंभीर हालत में पहले उसे स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने तुरंत जयपुर रेफर कर दिया. परिवार के लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि बच्चा किसी तरह बच जाएगा. लेकिन जयपुर पहुंचने से पहले ही रास्ते में समर ने दम तोड़ दिया.

बेटे की मौत से टूट चुके पिता किरोड़ी लाल मीना घर लौटने की तैयारी कर रहे थे. तभी गांव के परिचित मदनमोहन का फोन आया. उसने भरोसा दिलाया कि बच्चा शायद अभी जिंदा हो और जयपुर के बड़े डॉक्टर उसे बचा सकते हैं. पिता का दिल यह उम्मीद छोड़ने को तैयार नहीं था. बेटे की लाश को लेकर वे जयपुर पहुंचे. यहां पर बच्चे को अस्पताल में रखा गया, लेकिन डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.

अंतिम संस्कार में उजागर हुई सच्चाई

जब शव अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया जा रहा था, तभी परिजनों ने देखा कि बच्चे की दोनों आंखें गायब हैं. इस पर जब मदनमोहन से सवाल किया गया, तो उसने कहा कि उसने बच्चे की आंखों का दान कर दिया है. लेकिन इस प्रक्रिया में न तो परिवार की अनुमति ली गई थी और न ही किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया. यहीं से शक गहराता गया कि यह मामला अवैध कारोबार से जुड़ा हो सकता है.

परिजनों ने जब पुलिस में शिकायत करने की बात कही तो मदनमोहन उन्हें गुमराह करता रहा. कभी कहता कि उसने हाईकोर्ट में केस दर्ज करवा दिया है और फैसला उनके पक्ष में आएगा, तो कभी कहता कि कानूनी प्रक्रिया में समय लगता है. करीब एक साल तक उसने परिवार को उलझाए रखा.

FIR और जांच की शुरुआत

आखिरकार, परिवार ने 2 अक्टूबर 2025 को जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल थाने में मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कराई. एएसआई सुरजमल ने बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. जांच में यह भी सामने आया कि परिजनों को आई डोनेट सर्टिफिकेट सौंपा गया था. अब बड़ा सवाल यह है कि बिना अभिभावक की अनुमति ऐसा सर्टिफिकेट कैसे जारी हुआ? क्या इसमें अस्पताल प्रशासन या किसी बड़े नेटवर्क की संलिप्तता है?

विशेषज्ञों का कहना है कि आंखें निकालने की प्रक्रिया इतनी आसानी से नहीं हो सकती, जब तक इसमें डॉक्टरों और संभवतः अस्पताल प्रबंधन की मिलीभगत न हो. परिजनों का आरोप है कि यह महज लापरवाही नहीं, बल्कि योजनाबद्ध अपराध है, जिसमें उनके मासूम बेटे की आंखों का सौदा किया गया. पहले ही बेटे की मौत से टूटे परिवार को अब आंखों के गायब होने की क्रूरता ने और ज्यादा पीड़ा दी है. किरोड़ी लाल मीना और उनका परिवार अब न्याय की गुहार लगा रहा है और चाहता है कि इस पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हो, ताकि भविष्य में किसी और परिवार के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार न हो.

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